बिहार के सिवान जिले में उत्क्रमित उच्च विद्यलाय बघौना में शिक्षक श्री अखिलेश्वर कुमार अपने सरल और मीठी वाणी के लिए तो जाने ही जाते है पर जब वही सरलता और मिठास उनके काव्य कृतियों में दिखती है तो रचना साहित्य विशेष हो जाती है। प्रस्तुत है उनकी एक छोटी सी रचना जो आज सृस्टि नव सृजन करने वाले गुरु के महत्व का बखान करती है।
।।। गुरु ।।।
गुरु उगते सूरज की लालिमा
और दिन का गर्म प्रकाश है।
गुरु अंधेरी रातों में चांदनी
और उसकी शीतलता है।
गुरु कुम्हार की थापि का चोट
और अंतर्मन का सहारा है।
गुरु अपने शिष्यो और
उनके माता-पिता का अभिमान और विश्वास है।
गुरु एक-दूसरे का आचार-विचार
और संवाद है।
गुरु हरि की पहचान
और हमारी शान है।
क्योकि
गुरु बिना जीवन है अधूरा ,
गुरु बिन हो सके ना कोई कार्य पूरा।
गुरु कृपा से अर्जुन एकलव्य कृष्ण महान बने।
गुरु कृपा ही से अखंड भारत सम्राट मौर्य बने।
गुरु कृपा के अनंत बखान।
गुरु ही करता वर्तमान और भविष्य का निर्माण।।
■अखिलेश्वर कुमार (शिक्षक)
संपादक (शिक्षा विभाग)
जगत दर्शन न्यूज़