बिहार के औद्योगिक पुनर्जागरण का सूत्रधार जनआंदोलन, नेतृत्व की धुरी बने डॉ. शैलेश कुमार गिरि
पटना (बिहार): बिहार सरकार द्वारा राज्य के सभी बंद पड़े उद्योगों और चीनी मिलों को पुनः चालू करने की ऐतिहासिक घोषणा के बाद पूरे प्रदेश में उत्साह और उम्मीद की नई लहर दौड़ गई है। दशकों से ठप पड़े उद्योगों के पुनर्जीवन को लेकर यह निर्णय बिहार के किसानों, मजदूरों और बेरोजगार युवाओं के लिए एक बड़ी राहत माना जा रहा है। विशेष रूप से चीनी मिलों के बंद होने से प्रभावित सारण, वैशाली, गोपालगंज, पूर्वी चंपारण सहित कई जिलों में इस निर्णय को नई आर्थिक संभावनाओं के रूप में देखा जा रहा है।
इस ऐतिहासिक फैसले का श्रेय व्यापक रूप से भारतीय हलधर किसान यूनियन के राष्ट्रीय मुख्य प्रवक्ता, राष्ट्रीय कोर कमेटी उपाध्यक्ष एवं बिहार–झारखंड प्रदेश प्रभारी डॉ. शैलेश कुमार गिरि को दिया जा रहा है। बिहार में बंद पड़े उद्योगों को पुनर्जीवित कराने के आंदोलन में उनके नेतृत्व ने निर्णायक भूमिका निभाई। डॉ. गिरि ने न केवल आंदोलन का नेतृत्व किया बल्कि इसे दिशा, रणनीति और राज्यव्यापी विस्तार भी दिया।
सितंबर 2022 से जनवरी 2023 तक चले इस जनांदोलन की शुरुआत मढ़ौरा चीनी मिल के मुद्दे से हुई। युवा आंदोलनकारियों और किसानों ने 15 अगस्त को मढ़ौरा से पटना तक पैदल मार्च किया, जिसमें अतुल प्रताप सिंह, आलोक कुमार, वीर आदित्य, सागर कुमार, मनोरंजन मन्नू, पवन श्रीवास्तव, रणवीर चौबे, मुकेश कुमार सहित दर्जनों युवाओं ने सक्रिय भूमिका निभाई। इसी क्रम में पटना के गर्दनीबाग में 23 दिन का लंबा धरना चला। धरने के दौरान ऊर्जा कमजोर पड़ने लगी तो डॉ. शैलेश कुमार गिरि नोएडा से पटना पहुंचे, पगड़ी-साफा पहनकर आंदोलनकारियों का उत्साहवर्धन किया और दिल्ली सीमा पर 378 दिन चले किसान आंदोलन के अपने अनुभव से युवाओं को प्रेरित किया।
दिसंबर 2023 में जब आंदोलन ठहराव की स्थिति में था, उसी दौरान डॉ. गिरि अचानक मढ़ौरा चीनी मिल परिसर पहुंचे। उनकी पहल पर कई गोपनीय बैठकों में आगे की रणनीति तैयार की गई और किसान संवाद कार्यक्रमों के माध्यम से आंदोलन को दोबारा धार दी गई। इसी कारण यह आंदोलन पुनः राज्यव्यापी हो सका और सरकार पर प्रशासनिक तथा राजनीतिक दोनों ही स्तर पर दबाव बना।
डॉ. गिरि पहले भी दिल्ली के सभी बॉर्डरों पर चले 378 दिन के किसान आंदोलन के सक्रिय भागीदार रहे हैं। राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर लगातार बिहार के किसानों के हितों की पैरवी करने के कारण उनका जनाधार लगातार मजबूत होता गया। आंदोलन का यह अनुभव बिहार के औद्योगिक जनांदोलन की सबसे बड़ी ताकत साबित हुआ।
बिहार सरकार के निर्णय का स्वागत करते हुए किसानों, मजदूरों और युवाओं ने कहा कि यह सफलता डॉ. गिरि के नेतृत्व और अथक संघर्ष का प्रतिफल है। मढ़ौरा के साथ-साथ पूरा बिहार उनके योगदान को ऐतिहासिक मान रहा है। डॉ. गिरि ने भी इस घोषणा को सकारात्मक कदम बताते हुए कहा कि यह केवल शुरुआत है और आने वाले समय में बिहार में 12 से 20 लाख रोजगार सृजन का लक्ष्य हासिल किया जाएगा।
यह निर्णय बिहार में औद्योगिक पुनरुत्थान के एक नए अध्याय की शुरुआत माना जा रहा है, जिसमें जनशक्ति, आंदोलन की मजबूती और नेतृत्व का सामूहिक योगदान स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
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