हिंदुस्तान की मस्तक पर विराजमान हिंदी
हिमालय के माथे की बिंदी,
हिंदुस्तान की मस्तक पर विराजमान हिंदी,
स्वतंत्र भारत की शान बढ़ाती,
राष्ट्र भाषा हमारी हिंदी,
हर क्षेत्रीय भाषा के साथ जुड़ी हमारी हिंदी,
सरल है इसका व्याकरण विधान,
समृद्ध है इसका शब्दकोश,
सीखने में सरल आसान है हमारी हिंदी,
तुलसीदास, मीराबाई, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद की अद्भुत अलंकार है हमारी हिंदी,
ब्रह्मगुप्त, कुटिल से जन्मी नागर,
अक्षर -अक्षर करती भारत का गुणगान है हमारी हिंदी, हिन्दूत्व की पहचान है हमारी हिंदी,
माटी के कण -कण में बसती,
राम कृष्ण का मान है हमारी हिंदी,
नदियों के कल -कल में बहती हमारी हिंदी,
सागर -महासागर के लहरों में बहती,
हम हिन्दुस्तानियों की जान है हमारी हिंदी।
प्रिया पाण्डेय "रोशनी" (हुगली, पश्चिम बंगाल)