.... कि तुम कब आओगे?
इंतज़ार रहता हैं मुझे तुम्हारे खत का,
बैठी रहती हूं इसी आस में छत पर,
कि तुम कब आओगे,
और मेरी सुनी दुनियां को,
अपने प्यार से सजाओगे,
सुनती रहती हूं बस मैं,
कल्पना के गाने,
और डूब जाती हूं,
तुम्हारी कल्पनाओं में ,
और बुन ने लगती हूं,
अपनी भविष्य की तस्वीरें
होते होंगे सबके अपने सपने,
पर मेरे तो सपनो में ही तुम हो,
कैसे बया करु मैं तुम्हे,
मेरी इन सुनी हाथों की,
लकीर ही तुम हो,
मुझे पता हैं,
तुम फ़र्ज़ से बंधे हो,
लगे भारत माता की सेवा करने में,
मुझे गर्व हैं तुम पर,
की मैं हूँ एक फ़ौजी की फ़ौजन,
पर मेरे जीवनसाथी,
तुम जल्दी लौट आना,
क्यों कि देख रही हैं तुम्हारा रस्ता,
तुम्हारी ये संगिनी,
बस कहना हैं तुमसे इतना,
देना ज़वाब मुझे,
इस खत का ,
की तुम कब आओगे ,
तुम कब आओगे।