सजगता-आत्मा का दर्पण
हर बदलाव की शुरुआत आत्म चिंतन की सजगता से होती है।
हम बहुत बार व्यस्त हो कर इतने खो जाते हैं जीवन की दौड़ में एहसास कहाँ, कब गायब हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता।
सच यह है कि भौतिक जगत की माया ने मानव मन को भ्रमित कर रखा है। जब तक हम इसे पहचान पाते हैं, तब तक हमारा जीवन ही आखरी पड़ाव पर पहुंच जाता है।
वास्तव में अपने भीतर की पीड़ाओं से तभी मुक्त हो सकते हैं,जब हमारी चेतना उस गहरी सजगता तक पहुँचती है। यह आत्मा के दर्पण जैसी होती है जो कदम कदम पर यह दर्शाती है कि हमें क्या छोड़ना है, क्या अपनाना है? क्या उचित है क्या अनुचित? और हमें जीवन के किस लक्ष्य की ओर बढ़ना है।