शुक्रिया में..
✍️डॉ. कंचन मखीजा
तेरी दोस्ती के
हर दुआ कम है।
सजदे में उठ रहे हाथ..
खुशी से आंख नम है।।
सवारूं निखारुं
यूं ही इसे मैं हर पल,
जब तलक मेरी..
सांसों में दम है।
संभाला तुम्हीं ने
जब कोई नहीं था,
तुझसे जुड़ी हर दास्तां..
का हर किस्सा कम है।।
धड़कन में बस
गई प्रीत तेरी,
रौशनाईयों में भीगा..
हुआ ये तन और् मन है।।
नहीं और कहीं
तुम यहीं थे,
एहसास में अब..
न खुशी न ग़म है।।
बरस गई बूंद
और् उतरी खुमारी,
नज़र में तू है औ..
तेरा दर्पण है।।
हर दुआ कम है।
सजदे में उठ रहे हाथ..
खुशी से आंख नम है।।
सवारूं निखारुं
यूं ही इसे मैं हर पल,
जब तलक मेरी..
सांसों में दम है।
संभाला तुम्हीं ने
जब कोई नहीं था,
तुझसे जुड़ी हर दास्तां..
का हर किस्सा कम है।।
धड़कन में बस
गई प्रीत तेरी,
रौशनाईयों में भीगा..
हुआ ये तन और् मन है।।
नहीं और कहीं
तुम यहीं थे,
एहसास में अब..
न खुशी न ग़म है।।
बरस गई बूंद
और् उतरी खुमारी,
नज़र में तू है औ..
तेरा दर्पण है।।
झांसी की रानी
मणिकर्णिका पुण्य तिथि (विशेष)
प्रण में साहस की धार लिए,
दुःख नियति के स्वीकार किए।
चली मर्दानी झाँसी की रानी-
हाथों में दो तलवार लिए।।
तोड़ी झूठी गलत रूढ़ियाँ,
खोल के सारी बंद बेड़ियाँ।
प्रारब्ध से भी हार न मानी -
मातृ धर्म की शपथ लिए।।
शिक्षा के सब खोले बंधन,
किया मात्र देश एक चितंन।
बढ़ी अस्मिता निर्मल शुचिता-
अनंत शक्ति के दीप लिए।।
तात्यां की इस वीर मनु ने,
क्रांति की ज्वाला लक्ष्मी ने।
बाण चला कुशल मेधा के-
कुटिल प्रयोजन विफल किए।।
शत गज का वरदान लिया,
नेतृत्व का जय घोष किया।
चली मर्दानी झांसी की रानी-
स्वतंत्रता का मान लिए !!
अश्वारूण हो -शंखनाद कर,
शस्त्र शौर्य व ओज तेज भर।
नहीं रुकी वह नहीं थकी वह-
बढ़ी अनवरत विश्राम लिए।
मां भारती के आंचल का,
लक्ष्मी ने सुंदर श्रृंगार किया।
हर नारी के गौरव का अनुपम-
अप्रतिम मान-सम्मान किया।
चित्त में जन-जन के बसती है,
बन कर साहस वह गर्जती है।
गौरवमयी भारत की नारी!
उर में राष्ट्र नव निर्माण लिए।।
दुःख नियति के स्वीकार किए।
चली मर्दानी झाँसी की रानी-
हाथों में दो तलवार लिए।।
तोड़ी झूठी गलत रूढ़ियाँ,
खोल के सारी बंद बेड़ियाँ।
प्रारब्ध से भी हार न मानी -
मातृ धर्म की शपथ लिए।।
शिक्षा के सब खोले बंधन,
किया मात्र देश एक चितंन।
बढ़ी अस्मिता निर्मल शुचिता-
अनंत शक्ति के दीप लिए।।
तात्यां की इस वीर मनु ने,
क्रांति की ज्वाला लक्ष्मी ने।
बाण चला कुशल मेधा के-
कुटिल प्रयोजन विफल किए।।
शत गज का वरदान लिया,
नेतृत्व का जय घोष किया।
चली मर्दानी झांसी की रानी-
स्वतंत्रता का मान लिए !!
अश्वारूण हो -शंखनाद कर,
शस्त्र शौर्य व ओज तेज भर।
नहीं रुकी वह नहीं थकी वह-
बढ़ी अनवरत विश्राम लिए।
मां भारती के आंचल का,
लक्ष्मी ने सुंदर श्रृंगार किया।
हर नारी के गौरव का अनुपम-
अप्रतिम मान-सम्मान किया।
चित्त में जन-जन के बसती है,
बन कर साहस वह गर्जती है।
गौरवमयी भारत की नारी!
उर में राष्ट्र नव निर्माण लिए।।