रचना धर्मिता और अध्यात्मिक प्रासंगिकता!
-✍️डॉ. कंचन मखीजा
आज के डिजिटल युग में पत्रकारिता की जिम्मेदारियां पहले से कहीं अधिक बढ़ गई हैं। एक समय था जब खबरें अखबारों और विश्वसनीय चैनलों तक सीमित थीं, लेकिन अब सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर हर कोई "पत्रकार" बन बैठा है। इस बदलाव ने पत्रकारिता को लोकतांत्रिक तो बना दिया है, लेकिन साथ ही साहित्यिक चोरी और झूठी खबरों की समस्या को भी जन्म दिया है और पत्रकार की नैतिकता पर सवाल खड़े किए हैं।
संसाधनों के अत्यधिक उपयोग ने और आधुनिकीकरण ने भी प्लेगरिज़्म को बढ़ाया है। प्लेगरिज़्म का अर्थ है - किसी दूसरो के लिखे या कहे हुए शब्दों को बिना श्रेय दिए हुए अपनी जानकारी के रूप में प्रस्तुत करना। यह सिर्फ अनैतिक ही नहीं, बल्कि एक प्रकार की बौद्धिक चोरी भी है। जो जाने अनजाने आज के समय में बढ़ती जा रही है।
महात्मा गांधी ने एक बार कहा था "सत्य एक है, रास्ते कई हो सकते हैं।"
परंतु जब हम दूसरों के विचारों को अपने नाम से छापते हैं, तो हम न सिर्फ सत्य को तोड़ते हैं बल्कि अपने रास्ते को भी दूषित करते हैं।
प्रामाणिक पत्रकारिता में मूल विचार और शोध का होना अनिवार्य है। जब कोई पत्रकार बिना स्रोत के कॉपी की गई सामग्री का प्रयोग करता है, तो वह अपनी विश्वसनीयता के साथ पाठकों का विश्वास भी खो देता है और जब पत्रकारिता का उपयोग किसी एजेंडा, अफवाह या राजनीतिक प्रोपेगंडा को बढ़ावा देने के लिए होता है, तो यह पत्रकारिता नहीं, बल्कि जनता के साथ धोखा होता है।आज की तेज़ रफ्तार और प्रतिस्पर्धा से भरी दुनिया में, मौलिकता एक अमूल्य गुण बन चुकी है। चाहे लेखक हों, पत्रकार हों या छात्र, हर कोई अपनी बात को प्रभावशाली तरीके से कहने की होड़ में लगा है। इसी दौड़ में अक्सर लोग शॉर्टकट अपनाते हैं और प्लेगरिज़्म जैसे अनैतिक रास्ते पर चल पड़ते हैं।
परंतु यदि हम योग और अध्यात्म की शिक्षाओं की ओर लौटें, तो हमें पता चलता है कि मनो प्रत्याहार, कर्म योग, और अध्यात्म न केवल आत्मविकास के मार्ग हैं, बल्कि ये रचनात्मक नैतिकता की रक्षा के लिए भी अनिवार्य हैं।
रवीश कुमार, जिन्होंने NDTV में रहते हुए सरकार से कठिन सवाल पूछने की हिम्मत दिखाई, पत्रकारिता में सत्य की आवाज बने। वे कहते हैं:
"पत्रकार का काम सिर्फ सूचना देना नहीं, बल्कि सवाल पूछना भी है।"
पुलित्जर पुरस्कार विजेता मारिया रेसा, जिन्होंने फिलीपींस में सत्ता के खिलाफ झूठी खबरों की पोल खोली जो सब के लिए एक प्रेरणा हैं। उनका मानना है:
"Without facts, you can't have truth. Without truth, you can't have trust."
स्वामी विवेकानंद कहते हैं:
"The highest ideal is to be ready to sacrifice for others. Work done selfishly leads to bondage; work done selflessly leads to liberation."
यदि गहराई से विचार करें तो पाएंगे इस का मूल कारण स्वार्थ है नाम, प्रसिद्धि या त्वरित सफलता की लालसा। भगवद्गीता का कर्म योग भी दर्शाता है कि
"उद्धरेदात्मनाऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।"
अर्थात "मनुष्य को अपने द्वारा ही अपना उद्धार करना चाहिए, न कि स्वयं को गिराना।"
कर्म योग हमें यह समझने की शक्ति देता है कि हमारी अभिव्यक्ति हमारी आत्मा की आवाज़ है, उसे चुराना नहीं, बल्कि साधना चाहिए।जब हम अपने लेखन, रचनात्मकता या अध्ययन को ईश्वर को समर्पित कार्य के रूप में देखने लगते हैं तो उसमें नकल की कोई जगह नहीं रहती। तब रचना प्रतिस्पर्धा नहीं, तपस्या बन जाती है।
योग दर्शन में भी मनो प्रत्याहार के माध्यम से सिखाया गया है जब व्यक्ति मनो प्रत्याहार का अभ्यास करता है, तब वह बाहरी प्रभावों जैसे कि तुलना, लालच, और लोकप्रियता की चाह से मुक्त होता है। यही वे कारण हैं जो अक्सर किसी को दूसरों की रचनाओं की नकल करने के लिए प्रेरित करते हैं। मनो प्रत्याहार से मन को शांति मिलती है, विचार स्पष्ट होते हैं, और व्यक्ति अपने मूल विचारों से जुड़ने लगता है।
पत्रकारिता सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि यह एक सामाजिक जिम्मेदारी है। यह वह शक्ति है जो लोकतंत्र को जीवित रखती है और निष्पक्ष पत्रकारिता और तथ्यात्मक रिपोर्टिंग ही सत्य का आधार होती हैं।
प्लेगरिज़्म और फेक न्यूज़ से बचने के लिए कुछ सावधानियां बरतनी भी जरुरी हैं जैसे कि
हर समाचार को प्रकाशित करने से पहले उसके स्रोत की पुष्टि करना जरूरी है। विश्वसनीय संस्थाओं जैसे Press Trust of India (PTI), Reuters, BBC, आदि से जानकारी की जांच करें। AI और plagiarism checkers का प्रयोग करें:आज अनेक ऑनलाइन टूल्स जैसे Grammarly, Turnitin, Copyscape आदि उपलब्ध हैं, जो यह जांच सकते हैं कि लेख सामग्री मौलिक है या नहीं।
प्रत्येक व्यक्ति की स्वयं भी यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि बिना सोचे समझे केवल काॅपी पेस्ट मैसेज न करे। अपने स्वाध्याय और ज्ञानवर्धक जानकारी से अपना कौशल बढ़ाकर, जांच-पड़ताल के बाद उपयुक्त निष्पक्ष निष्कर्ष पर ही विचार दृढ़ करें।
पत्रकारिता की पढ़ाई में नैतिक मूल्यों को अनिवार्य बनाया जाए। युवा पत्रकारों को सिखाया जाए कि हम सत्य की राह पर चलेंगे, विचारों की चोरी नहीं करेंगे और समाज को सही, सटीक व नैतिक जानकारी प्रदान करेंगे।
आंतरिक मनो-प्रत्याहार, कर्म-योग और अध्यात्म रचनात्मकता को शुद्ध रखने की साधना है इसी से हम रचना धर्मिता की गरिमा को बनाए रख सकते हैं। इसलिए, एक सच्चे रचनाकार का न केवल अपने शब्दों पर अधिकार होना चाहिए, बल्कि अपने अंतःकरण पर भी नियंत्रण होना चाहिए। जब विचार भीतर से आएं, तो उन्हें चुराने की आवश्यकता नहीं रहती, वे स्वयं ईश्वरीय अनुदान और प्रसाद की तरह बाहर आते हैं और हम केवल निमित्त मात्र रह जाते हैं।