कौन हो तुम?
✍️बिजेन्द्र कुमार तिवारी
बोल तेरा क्या धर्म है प्यारे, क्या तेरा ईमान।
जात पूछकर जान मारता, क्या तेरी पहचान।।
नेक इरादे लेकर सारे घुम रहे पहलगाम
देख छवि मन पुलकित होता सुन्दरता का धाम।।
शोर मचाते कलकल झरने, हरे भरे मैदान।
कहीं नदी की पावनता देती सुखमय सम्मान
सब धरती के स्वर्ग का, देखें अनुपम रूप।
गजब की रचना काश्मीर की, रची सृष्टि के भूप।।
तरह तरह के पक्षी गाकर सुरमयी राग सुनाते।
सुन्दर, शान्त, मनोरम, घाटी, देख बहुत सुख पाते।।
प्रकृति की दिखती है पावन, स्नेहिल निर्मल छाँव।
जंगल झाड़ पहाड़ झील से, सजा ये सुन्दर गाँव।।
ऐसी सुन्दर पावन मिट्टी हुई खून से लाल।
तेरे जाति धर्म नीयत पर, उठते कई सवाल।।
तेरे गंदे नीयत से नफ़रत की बदबू आती है।
मानवता पर दाग हो तुम सब, साफ समझ में आती है।।
भारतीयता है धर्म हमारी, अपना तुम बतलाओ।
तेरा तो आतंक धर्म है, कौन हो तुम समझाओ।।
कहे बिजेन्दर अधम जात तुम, पतित धर्म है तेरा।
हैं तेरे नापक इरादे, खल मंडली बसेरा।।
भारत के जाँवाज सिपाही, गढ़ में घुसकर मारेंगे।
तेरी करनी का फल देकर, अपना घर्म सँवारेंगे।।
✍️बिजेन्द्र कुमार तिवारी (बिजेन्दर बाबू)
गैरतपुर, मांझी, सारण, बिहार, मो. 7250299200