अमन-चैन:नजरिया
✍️ राजीव कुमार झा
देश विभाजन की घटना को भारत के इतिहास में दुर्भाग्य के रूप में देखा जाता है। इसके बाद पाकिस्तान से हमारे संघर्ष का एक लंबा इतिहास रहा है। कुछ साल पहले अटल बिहारी वाजपेयी जब भारत के प्रधानमंत्री थे तो कांधार में इंडियन एयरलाइंस के विमान को अपह्त करके वहां ले जाना और भारतीय जेल से अपने साथी आतंकवादियों को छुड़ाना पाकिस्तान और खासकर कश्मीरी आतंकवादियों की सबसे कायराना हरकत थी और भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने इसीलिए अफगानिस्तान के कांधार जाकर तालिबान को उन आतंकवादियों को सौंप भी दिया था। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि भारत ने उस दिन पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के सामने हथियार डाल दिया था। आखिर तिहाड़ से कांधार ले जाए जाने वाले आतंकवादी हमारे देश में क्या करने आए थे। सेना और कश्मीर पुलिस ने उनको पकड़ा था। किसी भी देश के सुरक्षा बल उस देश के प्राणाधार होते हैं। हम अपने सुरक्षा सैनिकों के बारे में भी ऐसा कह सकते हैं जो रोज आतंकवादियों के कुत्सित करतूतों से देश को बचाने में जुटे हैं। कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के तमाम नेताओं का उट-पटांग वक्तव्य मीडिया में आता रहा। बेनजीर भुट्टो और नवाज शरीफ सारे नेता इसमें शामिल हैं। परवेज मुशर्रफ ने तो इस बारे में आगरा में आकर हमारे प्रधानमंत्री को अपने मंसूबों से वाकिफ कराया। सचमुच पाकिस्तान का निर्माण हमारी सबसे बड़ी भूल थी और यहां हमें फिर अपने निर्णय पर विचार करना होगा। कश्मीर ही नहीं सारा पाकिस्तान भारत का परंपरागत भूभाग और बेहद पवित्र क्षेत्र है। महात्मा गांधी हृदय परिवर्तन की अवधारणा पर विश्वास करते थे और
कश्मीर के बारे में पाकिस्तान की समझदारी में भी भारत
वर्षों से ऐसी सोज को लेकर भ्रम में जीता रहा है। पाकिस्तान ही कश्मीर की समस्या के मूल में है और हजार सालों तक कश्मीर के लिए पहलगाम हमले जैसी घृणित वारदातों के सहारे भारत से लड़ाई लड़ने की बात कहने वाला यह देश भारत के लिए अत्यंत खतरनाक साबित होगा। इसका अस्तित्व भारत के लिए घातक है।
मुस्लिम देशों का पाकिस्तान से कोई लेना-देना नहीं है।
वे सारी बातें जानते हैं कि पाकिस्तान एक मुस्लिम देश कैसे बना और यह कहा जा सकता है कि दुनिया में पाकिस्तान के हुक्मरान मुसलमानों की एक फिरकापरस्त बिरादरी के लोग हैं जिन्होंने अपने कौम के साथ दगाबाजी करके इस्लाम का नाजायज़ इस्तेमाल हुकूमत में किया है। कश्मीर के इतिहास में कभी खून खराबा नहीं था। आज पाकिस्तान अमरीका का सैनिक ठिकाना भी है और भारत को इसकी कभी कोई परवाह नहीं रही। भारतीय सेना की तोपों और लड़ाकू विमानों की गर्जना में यह देश एक दिन तबाह हो जाएगा और कश्मीर के आतंकवादी अपने घरों में दुबक जाएंगे। पाकिस्तानी सेना आखिरकार परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का सपना भूल कर हथियार डाल देगी और उस दिन शिमला में समझौता करने की जगह पाकिस्तान को मिट्टी में मिला देना ही भारत का सबसे बड़ा फर्ज होना चाहिए। अफगानिस्तान के सारे तमाशे के केन्द्र में पाकिस्तान रहा था और ओसामा बिन लादेन को मौत की नींद सुलाने के बाद अमरीका में अमन-चैन कायम हुआ। यहां की सरकार तालिबान से सांठगांठ करके अमरीका को धोखे में रखा रही थी। अमरीका सारी दुनिया में अपना दबदबा कायम किए हुए है और पाकिस्तान जैसे एक कमजोर देश का इस्तेमाल दक्षिण पूर्व एशिया में अपने सैनिक प्रभाव क्षेत्र और हथियार भंडार के ठिकाने के रूप में वह करता रहा है। भारत ने पाकिस्तान को बराबर मुंहतोड़ जवाब दिया लेकिन भाजपानीत वर्तमान सरकार का रवैया पाकिस्तान के प्रति असमंजस से परिपूर्ण रहा है। जनरल विपिन रावत के समय से ही पाक अधिकृत कश्मीर को भारत में मिलाने की बात सुनी जाती रही है।
इस पर ठोस अमल होना चाहिए और कश्मीरी आतंकवादियों के नाम डाक टिकट जारी करने के कुत्सित कार्यों को लेकर पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान पर भी भारत को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मुकदमा दायर करना चाहिए। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कश्मीर में पहलगाम का नरसंहार अमरीका से भारत लाए गये मुम्बई हमलों के साजिश कर्ता किसी नामचीन आतंकवादी से ही अंततः है। आतंकवाद एक असभ्य समाज का राजनीतिक जीवन दर्शन है और इसमें शामिल लोगों को सभ्य समाज के नियम कायदे कानूनों का ज्ञान होना चाहिए। कोई भी देश अपने नागरिकों को किसी अन्य सभ्यता संस्कृति विरोधी तत्वों के हाथों में जानबूझकर उनको नहीं सौंप सकता है। ब्रिटिश काल में पाकिस्तान का निर्माण यहां की तत्कालीन सरकार की अनुचित कार्रवाई थी और इसके अंतर्विरोध के रूप में आज भी ऐसे तत्व धर्म के नाम पर समाज को गुमराह करने में जुटे हैं।
लेखक राजीव कुमार झा एक स्वतंत्र विचारक है। यह लेख उनके मूल वक्तव्य है।