जीवन का शतक लगा चुके आचार्य विश्वनाथ शुक्ल को कंठस्थ याद है श्रीमद्भगवद्गीता। स्वयं पूरी करते हैं अपनी दिनचर्या।
✍️मनोज कुमार सिंह
///जगत दर्शन न्यूज
सारण (बिहार): भागमभाग एवम आपाधापी से कोसों दूर तथा सादगी एवम शाकाहार के पर्याय तथा अपनी जिंदगी के एक सौ बसंत देख चुके सारण जिले के रिविलगंज प्रखण्ड अंतर्गत ढेलहारी गाँव निवासी आचार्य विश्वनाथ शुक्ल को आज भी श्रीमद्भगवद्गीता कंठस्त याद है। वेद की ऋचाओं एवम पुराणों की सूक्तियों में हमेशा खोए रहने वाले श्री शुक्ल इस उम्र में पूरी तरह स्वस्थ हैं एवम अपनी दिनचर्या सहज ढंग से खुद ही निपटा लेते हैं। वर्ष 1999 में माँझी दलन सिंह हाई स्कूल से बतौर संस्कृत शिक्षक के पद से रिटायर श्री शुक्ल इस उम्र में भी दिनचर्या के अलावे थोड़ी बहुत खेती किसानी एवम बागवानी का काम भी कर लेते हैं। अध्यापन कार्य के दौरान विद्यालय आते व जाते समय अपनी साइकिल की हैंडल पर श्रीमद्भगवद्गीता की पुस्तक रखकर पूर्ण मनोयोग से उसके श्लोकों का अनवरत अध्ययन उनकी दिनचर्या में शामिल रहता था। आसपास के गाँव के लोगों का मानना है कि संस्कृत के प्रकांड विद्वान श्री शुक्ल का जीवन सचमुच अनुकरणीय एवम अद्वितीय है। लगभग एक सौ वर्ष की उम्र में भी उनके पूरी तरह स्वस्थ रहने एवम स्वाध्यायरत होने को लोग ईश्वरीय वरदान से कम नही मानते। शतक की उम्र में भी उनके शरीर के अन्य अंगों की तरह उनकीं आंखें,हाथ पैर तथा अधिकांश दाँत भी सलामत हैं। पत्रकारों से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि संस्कारवान चरित्र का इन्सान ही सचमुच संस्कृत का विद्यार्थी बन सकता है। संस्कृत का विद्यार्थी भाषा तथा ब्याकरण में पारंगत होकर ही अपनी संस्कृति का वाहक बन सकता है।