गैर संग प्रीत हुई पराई, किस किस के दुख दूर करूँ!
✍️सुखविंद्र सिंह मनसीरत
गैर संग प्रीत हुई पराई
***********************
हिचकी के साथ याद थी आई,
गैर संग प्रीत हुई थी पराई।
हाथ न आया वो पल सुहाना,
काम न आया बनाया बहाना,
देता रहा दिल दर्द ए जुदाई।
गैर संग प्रीत हुई थी पराई।
कसमें - वादे निभा नहीं पाए,
दो तन एक जान हुए पराए,
आँसुओं भरी हमारी विदाई।
गैर संग प्रीत हुई थी पराई।
दुश्मन है प्रेमियों का ज़माना,
आधा - अधूरा रहे प्रेम तराना,
मोहब्बत की अधूरी पुरवाई।
गैर संग प्रीत हुई थी पराई।
कोई नहीं यहाँ मीत सहारा,
प्यार का पंछी सदा बेसहारा,
रीति-रिवाज़ों में फंसी रिहाई।
गैर संग प्रीत हुई थी पराई।
मनसीरत मन बड़ा अनुरागी,
गली-गली भटके बन वैरागी,
हिस्से में आई हमारे तन्हाई।
गैर संग प्रीत हुई थी पराई।
हिचकी के साथ याद थी आई,
गैर संग प्रीत हुई थी पराई।
**********************
किस किस के दुख दूर करूँ
**********************
किस किस के दुख दूर करूँ
यह दुनिया दुखिया सारी।
पेट आग कहीं न बुझती,
पग - पग पर है मारो मारी।
कोई किसी का मीत नहीं,
होती सभी की जीत नहीं,
लगें हुए जड़ें काटने,
आगे कुंआ पीछे खाई।
मन मे कोई प्रीत नहीं,
साफ़ - सुथरी है नीत नहीं,
पेट - कपट से लिप्त सभी,
दिलो - दिमाग होशियारी।
बेरंग हो गए रिश्ते-नाते,
मुँह फेरते हैं आते-जाते,
रंग उड़ गए हैं मुख मोटे,
खाली है प्रेम - पिचकारी।
छलकत है माया नगरी,
जैसे हो अध-जल गगरी,
खाली हो रही है मोह में,
सरेआम ये दुनियादारी।
मनसीरत है बिना बिछौना,
नाजुक सा खेल - खिलौना,
पल - भर में है टूट जाता,
चीनी का बर्तन भारी।
किस किस के दुख दूर करूँ,
यह दुनिया दुखिया सारी।
पेट आग कहीं न बुझती।
पग - पग पर है मारो मारी।
**********************
✍️सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)