रत्ती भर भी परवाह नहीं, रत्ती भर भी शर्म नहीं, रत्ती भर भी अक्ल नहीं...!!
✍️ डॉ अमर नाथ प्रसाद
रत्ती यह शब्द लगभग हर जगह सुनने को मिलता है। जैसे - रत्ती भर भी परवाह नहीं, रत्ती भर भी शर्म नहीं, रत्ती भर भी अक्ल नहीं...!!
आपने भी इस शब्द को बोला होगा, बहुत लोगों से सुना भी होगा। आज जानते हैं 'रत्ती' की वास्तविकता, यह आम बोलचाल में आया कैसे?
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि रत्ती एक प्रकार का पौधा होता है, जो प्रायः पहाड़ों पर पाया जाता है। इसके मटर जैसी फली में लाल-काले रंग के दाने (बीज) होते हैं, जिन्हें रत्ती कहा जाता है। प्राचीन काल में जब मापने का कोई सही पैमाना नहीं था तब सोना, जेवरात का वजन मापने के लिए इसी रत्ती के दाने का इस्तेमाल किया जाता था।
सबसे हैरानी की बात तो यह है कि इस फली की आयु कितनी भी क्यों न हो, लेकिन इसके अंदर स्थापित बीजों का वजन एक समान ही 121.5 मिलीग्राम (एक ग्राम का लगभग 8वां भाग) होता है।
तात्पर्य यह कि वजन में जरा सा एवं एक समान होने के विशिष्ट गुण की वजह से, कुछ मापने के लिए जैसे रत्ती प्रयोग में लाते हैं। उसी तरह किसी के जरा सा गुण, स्वभाव, कर्म मापने का एक स्थापित पैमाना बन गया यह "रत्ती" शब्द।
रत्ती भर मतलब जरा सा।
अक्सर लोग दाल या सब्जी में ऊपर से नमक डालते रहते हैं। पुराने समय में माँग हुआ करती थी - - रत्ती भर नमक देना । रत्ती भर का मतलब जरा सा होता है। अब रत्ती भर कोई नहीं बोलता। सभी जरा सा हीं बोलते हैं , लेकिन रत्ती भर पर आज भी मुहावरे प्रचलित हैं। "रत्ती भर" का वाक्यों में प्रयोग के कुछ नमूने देखिए --
1)तुम्हें तो रत्ती भर भी शर्म नहीं है ।
2)रत्ती भर किया गया सत्कर्म एक मन पुण्य के बराबर होता है.
3) इस घर में हमारी रत्ती भर भी मूल्य नहीं है।
कुछ लोग" रत्ती भर " भी झूठ नहीं बोलते।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जिस रत्ती की बात यहाँ हो रही है, वह माप की एक ईकाई है। यह माप सुनार इस्तेमाल करते हैं। पुराने जमाने जो माप तौल पढ़े हैं , उनमें रत्ती का भी नाम शामिल है। विस्तृत वर्णन इस प्रकार है -
8 खसखस = 1 चावल,
8 चावल = 1 रत्ती
8 रत्ती = 1 माशा
4 माशा =1 टंक
12 माशा = 1 तोला
5 तोला= 1 छटाँक
16 छटाँक= 1 सेर
5 सेर= 1 पंसेरी
8 पंसेरी= एक मन
हाँलाकि उपरोक्त माप अब कालातीत हो गये हैं, पर आज भी रत्ती और तोला स्वर्णकारों के पास चल रहे हैं। 1 रत्ती का मतलब 0.125 ग्राम होता है । 11.66 ग्राम 1 तोले के बराबर होता है । आजकल एक तोला 10 ग्राम होता है।
इन सभी माप में रत्ती अधिक प्रसिद्ध हुई, क्योंकि यह प्राकृतिक रुप से पायी जाती है। रत्ती को कृष्णला, और रक्तकाकचिंची के नाम से भी जानी जाता है। रत्ती का पौधा पहाड़ों में पाया जाता है। इसे स्थानीय भाषा में गुंजा कहते है।
रत्ती के बीज लाल होते हैं, जिसका ऊपरी सिरा काला होता है। सफेद रंग के भी बीज होते हैं, जिनके ऊपरी सिरे भी काले होते हैं। यह बीज छोटा बड़ा नहीं होता, बल्कि एक माप व एक आकार का होता है। प्रत्येक बीज का वजन एकसमान होता है। इसे आप कुदरत का करिश्मा भी कह सकते हैं।
रत्ती के इस प्राकृतिक गुण के कारण स्वर्णकार इसे माप के रुप में पहले इस्तेमाल करते थे, कुछ पुराने शायद आजकल भी करते होंगे।
रत्ती का उपयोग पशुओं के घावों में उत्पन्न कीड़ों मारने के लिए किया जाता है। यह खुराक के रूप में प्रयोग किया जाता है। एक खुराक में अधिकतम दो बीज हीं दिए जाते हैं। दो खुराक दिए जाने पर घाव ठीक हो जाता है।
रत्ती के बीज जहरीले होते हैं। इसलिए ये खाए नहीं जाते। इनकी माला बनाकर माएँ अपने बच्चों को पहनाती हैं। ऐसी मान्यता है कि इसकी माला बच्चों को बुरी नज़रों से बचाती है।