समर्थ
✍️ संजय जैन "बीना" मुंबई
/// जगत दर्शन न्यूज
जिंदगी का अब कोई भरोसा नही।
कब आ जाये बुला हमें पता नही।
इसलिए हँसते खेलते जी रहा हूँ।
और जाने की प्रतिक्षा कर रहा हूँ।।
जो लोग लक्ष्य के लिए जीते है।
उनकी जिंदगी जिंदा दिल होती है।
और जो लोग हकीकत से भागते है।
जिंदगी उनकी नरक बनी रहती है।।
दुनियां में सबको जिंदा रहना है।
और कुछ भी उन्हें नही करना है।
पर सबके बीच में उन्हें बैठना है।
और सिर्फ जुमले बाजी करना है।।
जमाना बीत गया अब चौपालों का।
जहाँ हर प्रकार की बातें होती थी।
और अपने समर्थ के बल पर।
गाँव और परिवार बंधे रहते थे।।
टूट गया आज गाँव पर आसमान।
जब बना बनाया संसार उजड़ गया।
क्योंकि बांधने वाले का जाना हो गया।
इसलिए गाँव हमारा अब बिखर गया।।
रिश्तों का मोल
पुराने रिश्तें नातो का
नये से मेल नही होता।
पुरानी दोस्ती का भी
नये से मोल नही होता।
नये नये षडयंत्रों से
जीवन में बचना पड़ेगा।
नये और पुराने रिश्तों का
फर्क समझना पड़ेगा।।
सिलाई करने वाला यंत्र
पुराना हो या हो नया।
सिलाई करने के लिए
धागा तो लेना पड़ेगा।
अगर फट जाएँ कपड़ा
रफू तो करना पड़ेगा।
तभी पहनने लायक
शायद वो बन पायेगा।।
सिलाई पुरानी हो या नई
धागा तो निश्चित टूटेगा।
इसी तरह से रिश्तों का
कोई धागा तो टूटेगा।
फिर टूटे हुए धागे को
लगाना गाँठ पड़ेगा।
इसी तरह से जीवन की
डोरी को बंधना पड़ेगा।।