महापर्व छठ: क्यों और कैसे करें? क्या है इतिहास और पौराणिक कथा?
छठ हिन्दू त्यौहार है जो हर साल लोगों द्वारा बहुत उत्सुकता के साथ मनाया जाता है। ये हिन्दू धर्म का बहुत प्राचीन त्यौहार है, जो ऊर्जा के परमेश्वर के लिए समर्पित है जिन्हें सूर्य या सूर्य षष्ठी के रूप में भी जाना जाता है। लोग पृथ्वी पर हमेशा के लिए जीवन का आशीर्वाद पाने के लिए भगवान सूर्य को धन्यवाद देने के लिए ये त्यौहार मनाते हैं। लोग बहुत उत्साह से भगवान सूर्य की पूजा करते हैं और अपने परिवार के सदस्यों, दोस्तों और बुजुर्गों के अच्छे के लिए सफलता और प्रगति के लिए प्रार्थना करते हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार सूर्य की पूजा कुछ श्रेणी रोगों के इलाज से सम्बन्धित है जैसे कुष्ठ रोग आदि।
इस दिन जल्दी उठकर पवित्र गंगा में नहाकर पूरे दिन उपवास रखने का रिवाज है, यहाँ तक कि वो पानी भी नहीं पीते और एक लम्बे समय तक पानी में खड़े रहते हैं। वो उगते हुये सूर्य को प्रसाद और अर्घ्य देते हैं। ये भारत के विभिन्न राज्यों में मनाया जाता है, जैसे: बिहार, यू.पी., झारखण्ड और नेपाल। हिन्दू कलैण्डर के अनुसार, ये कार्तिक महीने में अमावस्या के बाद (अक्टूबर या नवम्बर महीने में) छठे दिन मनाया जाता है।
कुछ स्थानों पर चैत्री छठ चैत्र के महीने (मार्च और अप्रैल) में होली के कुछ दिन बाद मनाया जाता है। इसका नाम छठ इसलिये पड़ा क्योंकि ये कार्तिक महीने की शुक्ल षष्ठी के दिन मनाया जाता है। छठ पूजा देहरी-ओन-सोने, पटना, देव और गया में बहुत प्रसिद्ध है। अब ये पूरे भारत में मनाया जाने लगा है।
“इतिहास”
छठ पूजा हिन्दू धर्म में बहुत महत्व रखती है और ऐसी धारणा है कि राजा द्वारा पुराने पुरोहितों से आने और भगवान सूर्य की परम्परागत पूजा करने के लिये अनुरोध किया गया था। उन्होनें प्राचीन ऋगवेद से मन्त्रों और स्त्रोतों का पाठ करके सूर्य भगवान की पूजा की।
प्राचीन छठ पूजा हस्तिनापुर (नई दिल्ली) के पाण्डवों और द्रौपदी के द्वारा अपनी समस्याओं को हल करने और अपने राज्य को वापस पाने के लिये की गयी थी।
ये भी माना जाता है कि छठ पूजा सूर्य पुत्र कर्ण के द्वारा शुरु की गयी थी। वो महाभारत युद्ध के दौरान महान योद्धा था और अंगदेश का शासक था। ऐसी ही अनेकानेक पोस्ट पढ़ने के लिये हमारा फेसबुक पेज ‘श्रीजी की चरण सेवा’ को लाईक एवं फॉलो करें। अब आप हमारी पोस्ट व्हाट्सएप चैनल पर भी देख सकते हैं। चैनल लिंक हमारी फेसबुक पोस्टों में देखें।
छठ पूजा के दिन छठी मैया (भगवान सूर्य की पत्नी) की भी पूजा की जाती है, छठी मैया को वेदों में ऊषा के नाम से भी जाना जाता है। ऊषा का अर्थ है सुबह (दिन की पहली किरण)। लोग अपनी परेशानियों को दूर करने के साथ ही साथ मोक्ष या मुक्ति पाने के लिए छठी मैया से प्रार्थना करते हैं।
छठ पूजा मनाने के पीछे दूसरी ऐतिहासिक कथा भगवान राम की है। यह माना जाता है कि 14 वर्ष के वनवास के बाद जब भगवान राम और माता सीता ने अयोध्या वापस आकर राज्यभिषेक के दौरान उपवास रखकर कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष में भगवान सूर्य की पूजा की थी। उसी समय से, छठ पूजा हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण और परम्परागत त्यौहार बन गया और लोगों ने उसी तिथि को हर साल मनाना शुरु कर दिया।
“कथा”
बहुत समय पहले, एक राजा था जिसका नाम प्रियव्रत था और उसकी पत्नी मालिनी थी। वे बहुत खुशी से रहते थे किन्तु इनके जीवन में एक बहुत बचा दुःख था कि इनके कोई सन्तान नहीं थी। उन्होंने महर्षि कश्यप की मदद से सन्तान प्राप्ति के आशीर्वाद के लिये बहुत बडा यज्ञ करने का निश्चय किया।
यज्ञ के प्रभाव के कारण उनकी पत्नी गर्भवती हो गयी। किन्तु 9 महीने के बाद उन्होंने मरे हुये बच्चे को जन्म दिया। राजा बहुत दुःखी हुआ और उसने आत्महत्या करने का निश्चय किया। अचानक आत्महत्या करने के दौरान उसके सामने एक देवी प्रकट हुयी।
देवी ने कहा–‘मैं देवी छठी हूँ और जो भी कोई मेरी पूजा शुद्ध मन और आत्मा से करता है वह सन्तान अवश्य प्राप्त करता है।’ राजा प्रियव्रत ने वैसा ही किया और उसे देवी के आशीर्वाद स्वरूप सुन्दर और प्यारी सन्तान की प्राप्ति हुई। तभी से लोगों ने छठ पूजा को मनाना शुरु कर दिया।
“तैयारी”
छठ की पूजा में एक-एक विधि-विधान को महत्व दिया गया है। इन विधि-विधानों में पूजन सामग्री विशेष महत्व है साथ ही इन सामग्री के बिना छठ पूजा अधूरा माना गया है। छठ पूजा के लिए जो पूजन सामग्री महवपूर्ण है इसका पूरा लिस्ट इस प्रकार है–
बाँस या पितल की सूप, बाँस के फट्टे से बने दौरा, डलिया और डगरा, पानी वाला नारियल, गन्ना जिसमें पत्ता लगा हो, सुथनी, शकरकन्दी, हल्दी और अदरक का पौधा (हरा हो तो अच्छा), नाशपाती, नींबू बड़ा, शहद की डिब्बी, पान और साबूत सुपारी, कैराव, सिन्दूर, कपूर, कुमकुम, चावल (अक्षत), चन्दन, मिठाई।
इसके अतिरिक्त घर में बने हुए पकवान जैसे ठेकुवा, खस्ता, पुवा, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, इसके अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, इत्यादि छठ पूजन के सामग्री में शामिल हैं।
“परम्परा”
यह माना जाता है कि छठ पूजा करने वाला व्यक्ति पवित्र स्नान लेने के बाद संयम की अवधि के 4 दिनों तक अपने मुख्य परिवार से अलग हो जाता है।
इस पूरे समय वह शुद्ध भावना के साथ एक कम्बल के साथ फर्श पर सोता है। सामान्यतः यह माना जाता है कि यदि एक बार किसी परिवार नें छठ पूजा शुरू कर दी तो उन्हें और उनकी अगली पीढी को भी इस पूजा को प्रतिवर्ष करना पडेगा और इसे तभी छोडा जा सकता है जब उस वर्ष परिवार में किसी की मृत्यु हो गयी हो। ऐसी ही अनेकानेक पोस्ट पढ़ने के लिये हमारा फेसबुक पेज ‘श्रीजी की चरण सेवा’ को लाईक एवं फॉलो करें। अब आप हमारी पोस्ट व्हाट्सएप चैनल पर भी देख सकते हैं। चैनल लिंक हमारी फेसबुक पोस्टों में देखें।
भक्त छठ पर मिठाई, खीर, थेकुआ और फल सहित छोटी बाँस की टोकरी में सूर्य को प्रसाद अर्पण करते है। प्रसाद शुद्धता बनाये रखने के लिये बिना नमक, प्याज और लहसुन के तैयार किया जाता है। यह 4 दिन का त्यौहार है जो शामिल करता है :-
पहले दिन भक्त जल्दी सुबह गंगा के पवित्र जल में स्नान करते हैं और अपने घर प्रसाद तैयार करने के लिये कुछ जल घर भी लेकर आते हैं। इस दिन घर और घर के आसपास साफ-सफाई होनी चाहिये। वे एक समय का खाना लेते हैं, जिसे कद्दू-भात के रूप में जाना जाता है जो केवल मिट्टी के स्टोव (चूल्हे) पर आम की लकडियों का प्रयोग करके ताँबे या मिट्टी के बर्तन में बनाया जाता है।
दूसरे दिन (छठ से एक दिन पहले) पंचमी को, भक्त पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को पृथ्वी (धरती) की पूजा के बाद सूर्य अस्त के बाद व्रत खोलते हैं। वे पूजा में खीर, पूरी, और फल अर्पित करते हैं। शाम को खाना खाने के बाद, वे बिना पानी पियें 36 घण्टे का उपवास रखते हैं।
तीसरे दिन (छठ वाले दिन) वे नदी के किनारे घाट पर संध्या अर्घ्य देते हैं। अर्घ्य देने के बाद व्रती स्त्रियाँ पीले रंग की साडी पहनती हैं। परिवार के अन्य सदस्य पूजा से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रतिक्षा करते हैं।
छठ की रात नदी पर पाँच गन्नों से कवर मिट्टी के दीये जलाकर पारम्परिक कार्यक्रम मनाया जाता है। पाँच गन्ने पंचतत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) को प्रर्दशित करते हैं जिससे मानव शरीर का निर्माण करते हैं।
चौथे दिन की सुबह, भक्त अपने परिवार और मित्रों के साथ गंगा नदी के किनारे बिहानिया अर्घ्य अर्पित करते है। भक्त छठ प्रसाद खाकर व्रत खोलते है।
“महत्व”
छठ पूजा का सूर्योदय और सूर्यास्त के दौरान एक विशेष महत्व है। सूर्योदय और सूर्यास्त का समय दिन का सबसे महत्वपूर्ण समय है जिसके दौरान एक मानव शरीर को सुरक्षित रूप से बिना किसी नुकसान के सौर ऊर्जा प्राप्त हो सकती हैं। यही कारण है कि छठ महोत्सव में सूर्य को संध्या अर्घ्य और विहानिया अर्घ्य देने की प्रथा है।
इस समय सौर ऊर्जा में पराबैंगनी विकिरण का स्तर कम होता है तो यह मानव शरीर के लिए सुरक्षित है। लोग पृथ्वी पर जीवन को जारी रखने के साथ-साथ आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भगवान सूर्य का धन्यवाद करने के लिये छठ पूजा करते हैं। ऐसी ही अनेकानेक पोस्ट पढ़ने के लिये हमारा फेसबुक पेज ‘श्रीजी की चरण सेवा’ को लाईक एवं फॉलो करें। अब आप हमारी पोस्ट व्हाट्सएप चैनल पर भी देख सकते हैं। चैनल लिंक हमारी फेसबुक पोस्टों में देखें।
छठ पूजा का अनुष्ठान, (शरीर और मन शुद्धिकरण द्वारा) मानसिक शान्ति प्रदान करता है, ऊर्जा का स्तर और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, जलन क्रोध की आवृत्ति, साथ ही नकारात्मक भावनाओं को बहुत कम कर देता है। यह भी माना जाता है कि छठ पूजा प्रक्रिया के उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करने में मदद करता है। इस तरह की मान्यताएं और रीति-रिवाज छठ अनुष्ठान को हिन्दू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार बनाते हैं।