– पल भर के दोस्त –
///जगत दर्शन न्यूज
✍️पीके सूर्यवंशी “कृष्णा”
कहानी
यह कहानी उन दिनों में शुरु होती हैं जब मेरा बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी झांसी में एडमिशन हुआ था। घर में सारे लोग बहुत खुश थे ,चलो अब कुछ अच्छा हुआ, उस यूनिवर्सिटी से मेरा फार्मेसी डिपार्टमेंट में चयन हुआ था।
मेरी उस यूनिवर्सिटी में ओवर ऑल रैंक दो और द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ था, वहां जाने के लिए मुझे खुशी थीं क्योंकि मेरे भी दिल में काफ़ी खुशी हुई थी नई जगह घूमने और रहने का मौका मिलेगा, झांसी बाली रानी की मैंने बचपन में मम्मी से अनगिनत कहानी किस्से सुने थे । मैं वहां जाने के लिए काफी उत्सुक और थोड़ा डरा हुआ हुआ था।
“डर सबको लगता है चाहे वो इंसान हो या फिर जानवर डर तो डर होता हैं ”
अब कहानी पर चलते हैं, कहानी शुरु होती हैं मेरे सफर से ……झांसी में मेरा कोई पहचान का नहीं था न कोई रिश्तेदार मैं अपने घर से अकेला ही चल दिया। हा मैंने कुछ दोस्त ज़रूर बना लिए थे, वो इस प्रकार बने कॉलेज की तरफ़ से वॉट्सएप के ग्रुप के द्वारा, मेरे दो दोस्त बने वो मेरे दोनों काफी अच्छे दोस्त थे ।
और कुछ सीनियर्स भी बन गए थे। मेरे सीनियर्स ने एक मकान मालकिन का नंबर दे दिया, उनका घर यूनिवर्सिटी के पास में था,मैंने आंटी से बात की और मैं अपने घर से झांसी बाली बस से चल दिया। काफी अच्छा सफर रहा थोड़ी बहुत परेशानी भी हुई वो सफर में होती ही हैं , सफर में मज़ा बहुत आया लोगों के हाव भाव उनकी फैमिली और तरह तरह की बातें ….
मैं झांसी तकरीबन रात के 1 बजे पहुंचा होगा, मैने आंटी को कई बार कॉल किया, आंटी ने कॉल नहीं उठाई।
“मैंने सोचा आंटी सो गई होंगी सर्दियों का मौसम का था”
काफी कॉल्स के बाद आंटी ने कॉल रिसीव किया।
आंटी– बोलो बेटा
मैं–नमस्ते आंटी जी मैं यह कह रहा हूं मैं बस स्टैंड खड़ा हूं, बस ख़राब होने की वजह से इतनी लेट हो गई कृपया मुझे अपने घर का पता बताइए मैं वहां आ सकूं
आंटी–अच्छा ठीक पता लिखो
कमला नगर गली नंबर 24 मकान 132 तालाब चौक
आके फोन कर लेना, फिर मैं तुम्हे रूम दिखा दूंगी
मैं– जी आंटी जी
“जब शहर में आप नए हो और शहर भी तुम्हारे लिए नया हो तो सारी चीजें तुम्हे खूबसूरत और थोड़ी अजीब सी लगती है”
मैंने ऑटो किया फिर ऑटो चालक को वो एड्रेस बताया कुछ ही देर बाद ऑटो चालक ने उसी गली के सामने मुझे उतार दिया ।
मैंने उसे पैसे दिए और वो चला गया।
अब रात के 2 बजे गए होंगे शहर बिल्कुल शान्त हो गया दुकानें ,ठेले सब बन्द करके चले गए ।
मैं उस शहर में अकेला और अजनबी शहर था और थोड़ा डरा हुआ था क्योंकि रात के 2 बज रहे थे।
मैंने आंटी को फिर से कॉल किया आंटी ने आगे सफेद गेट वाले घर में आने को बोला।
मैंने उन्हें नमस्कार किया वो घर में अकेली थी थोड़ा असहज महसूस कर रही थीं वो।
मैं– आंटी जी यहां कोई रहता नहीं है क्या?
आंटी –काफी बच्चे चले गए हैं पेपर होने के बाद
अब कुछ ही दिनों के बाद आजायेगें…
अच्छा रूम दिखाती हूं !
मैं – जी आंटी
ताला खोलने लगी ….
आंटी: ये केवल सिंगल रूम है
लेने से पहले एक बात और बता दूं रेंट की कंडीशन यहां चिकन और दारू सिगरेट शक्त मना है…. और हा
पहले मैं एडवांस लेती अपने आधार कार्ड की फोटो कॉपी सुबह दे दीजिएगा।
मैं: आंटी जी एडवांस मेरे पास इतने रूपए लाया भी नहीं
मुझे यह बात पता होती हैं तो ले आता।
आंटी– मैने मयंक को बताया था अगर नहीं हैं तो मैं किसी अजनबी इंसान को रूम में रख भी नहीं सकती
तुम बेटा जा सकते हो।
मैं रोक नहीं सकती…
‘आंटी जी गेट लगा लेती हैं और अंदर चली जाती हैं ’
“अब मैं अजनबी शहर में अकेला और अजनबी गलियों मुसाफ़िर इंसान जैसा लग था।
अब मैंने सोच लिया यूनिवर्सिटी में एंट्री ले लूंगा और अंदर थोड़ा आराम कर लूंगा, सर्दी का कहर बढ़ता जा रहा था तापमान घटता जा रहा था।
मैंने बैग उठाया और यूनिवर्सिटी की तरफ चल दिया
आगे बहुत सारे कुत्ते भौंक रहे थे कोहरा बढ़ता जा था । मैं उस रोड पर बिल्कुल अकेला न कोई गाड़ी चल रही न कोई इंसान।
“जब दिल में आता है थोड़ा रुक जाओ तो रुक जाना चाहिए कभी कभी दिल सुननी चाहिए “
वो ही मैंने किया मैं रोड के साइड से खड़ा हो गया कोहरा बढ़ने लगा,
मैं कर भी क्या सकता था।
अब ऑटो भी बन्द न कोई दोस्त न कोई रिश्तेदार कॉल करूं तो किससे किससे करूं ?
प्लेटफॉर्म वो भी काफी दूर पास में कोई था तो वो था कोहरा और मेरी हिम्मत और कुछ भी नहीं , थी तो कुछ ही दूर पर मेरी मंजिल (यूनिवर्सिटी)
“हिम्मत जब दिल में हो मंजिल जब सामने हो तो डर ख़त्म सा हो जाता है ।”
मैं हाइवे पर पहुंचा लाइटों की रौशनी ऊपर से पूरा हाईवे पूरा शांत ऐसा लग रहा था मैं दुनियां की सबसे अच्छी शान्ति बाली जगह पर आ गया हूं मैं चलता चलता यूनिवर्सिटी के गेट पर पहुंचा समय 2:50 बजे होंगे ।
मैने गेट के सामने खड़े होकर आवाज दी कोई हैं……
मगर चपरासी इतनी सर्दी भरी रात में कहा जागता होगा।
“मेरे पास अब कुछ नहीं था, थीं तो सिर्फ मेरी हिम्मत “
मैंने गेट के साइड पर अपना कम्बल बिछा के लेट गया
यूनिवर्सिटी शहर से बाहर थी । ऊपर से बुंदेलखंड की एरिया, मैं लेट गया कुछ ही देर बाद कोहरे में एक लड़खड़ाता हुआ आदमी आ रहा था ,बिल्कुल भूत जैसा लग रहा था मुझे इतनी सर्दी में पसीना सा गया अब करूं तो करूं क्या?
मेरे दिल एक आवाज आईं मरो या इसे मार दो
पास आते ही बोलने लगा
आदमी– तू कौन है जो तूने मुझ ग़रीब की जगह छीनी कौन हैं तू कहा से आया है (नशे में)
मैं समझ गया यह शराब के नसे में हैं मैंने उत्तर दिया
मैं– मैं बाहर से आया हूं कल मेरा एडमिशन हैं भइया
मुझे शहर के बारे कुछ ज्यादा नहीं पता इस लिए रुक गया हूं ।
आदमी: यह मेरी सोने की जगह है उठो भागो (शराब के नसे जैसी गत क्रिया)
फिर वो हंसते हुए हाईवे के बीचों बीच चला गया।
अब मुझे नींद कहा आ सकती थी मैं दीवार के सहारे बैठ गया थोड़ी ही देर में मुझे ठंड लगने लगी ठंड की वजह से नींद आ गई जैसे ही मेरी आँख लगी
वैसे ही…
कुछ कुत्तों की आवाजें आने लगी और कोहरे में भागता हुआ एक कुत्ता आगे आ रहा था। उसके पीछे 5 से 6 कुत्ते होंगे लगे होंगे....
मैं छटपट खड़ा हो गया, जिधर से आवाज आ रही थी उधर देखने लगा ,अब क्या नई मुसीबत है। कुछ ही देर में
एक भागता हुआ कुत्ता के मेरे पीछे छुप गया , सारे कुत्ते आ गए मैने एक पत्थर उठाने का नाटक किया उन सारे को भगा दिया और वो सारे कुत्ते भाग गए । बचा तो एक मैं और एक डरा हुआ कुत्ता जो कि मेरे पीछे जो छुपा हुआ था ।
वो हॉफ रहा था काफी डर हुआ था। मैने उसके सिर पर हाथ फेरा मैने कहा….
मैं — टॉमी डरो मत
उसका नाम मैने टॉमी रख दिया वो भी मेरी तरह मेरा डरा और शहर में नया था, वो कुछ देर में मेरा दोस्त बन गया ।
टॉमी भी मेरी तरह मारा हुआ लग रहा था और वो भी कहीं दूर से भटका हुआ लग रहा था।
मुझे कुत्तों से पहले इतना प्यार नहीं था जब उस रात टॉमी मिला तो न जाने क्यों लगाव हो गया , शायद मेरा डर हो सकता है ।उसे मैंने अपने पास लिटा लिया।
उससे बातें करने लगा जैसे कि वो मेरी सारी बातें समझता हो।
अब मुझे भी हिम्मत सी आ गई थी , वो हमारे यूपी में एक कहावत है “एक से भले दुई ”
टॉमी मेरा दोस्त बन गया मुझे चाटने लगता और दौड़ने लगता
मानो की उसे उसका मालिक मिल गया हो।
“ जैसे कि हर कोई अजनबी से दोस्त बनता है ”
और टॉमी मेरा अच्छा दोस्त सा बन गया था मैंने अपने टिफिन से खाना निकाला उसे कुछ पराठे निकाल के खिला दिए ।
मेरा साथी मेरा दोस्त अब टॉमी बन गया था क्यूंकि अब मुझे उस जगह कोई डर नहीं रहा था।
जागते जागते मुझे नींद कब आ गई पता नहीं चला,मेरी आंखें सुबह 7 बजे खुली, मैने देखा कि टॉमी मेरे पास ही सो गया है।
मैने उसे जगाया, अब काफ़ी उजाला और शहर जाग गया था। मैंने टॉमी को बिस्किट डाले और बैग के आस पास हम दोनों टहलने लगे ।
मेरी कॉलेज में एंट्री 8:45 पर होने को थी मैं 8:45 मैं फार्मेसी स्टॉप की ओर चल दिया ।
मेरे साथ टॉमी भी घुसने लगा, तभी सिक्योरिटी बालों ने उसे देखा और उसे भगा लिया। मैने उसे देखा तो वो मेरा टॉमी
एंट्री होते ही मैं गेट से बाहर आया उसे गले से लगा लिया।
मैने उससे कहा तुम यहीं खड़े रहना मैं ऑफिस से आते ही मिलूंगा…..
मैं ऑफिस गया डॉक्यूमेंट जमा किए और जल्दी आ रहा मेरे दिल यह आ टॉमी भाग गया होगा बाहर आया “ तो मैने देखा कि टॉमी गेट की तरफ ही देख रहा है और उदास हैं और वो मेरा ही इंतेज़ार सा कर रहा है। ”
उसने जैसे मुझे देखा मैने उसका नाम लिया टॉमी….
उसने मुझे भाग कर मेरे सीने पर पैर रख दिए मुझे चाटने लगा।
फिर हम दोनों ….
मैं एक चाय बिस्कुट की दुकान पर गए साथ में मेरा दोस्त टॉमी (कुत्ता) भी गया
मैने उसे दो परले जी बिस्कुट खिलाएं और मैं रोड के किनारे चाय का आनंद लेने लगा।
चाय पीने के बाद मुझे अब घर भी तो लौटना था
मैंने चाय तफ़री से बस पूछी उसने बोला भइया कुछ ही देर बाद एक 10 बजे वाली डायरेक्ट वहां के लिए बस जाती हैं।
अभी 15 मिनिट शेष बचे हैं भाई….. इससे जा सकते हो आप
मैंने अपना मोबाइल देखा और सामान देखा बैग पीठ पर टांग लिया।
मुझे बुरा लग रहा है टॉमी का क्या होगा वो इस अजनबी शहर में अकेला है।
उसकी टेंशन होने लगी, फिर मैने उसे गले लगाया उससे कहने लगा
टॉमी टेंशन नहीं लेना मुझे जाना होगा यहां कोई घर और रूम नहीं है..!
मुझे जाना होगा….
दिल में आया इसे भी ले चालु।
तभी बस आती हुई दिख जाती हैं मैंने उसे हाथ दिया
मैं अब बस में बैठ गया…
टॉमी ऊपर चढ़ने की कोशिश करने लगता है ।
बस कंडक्टर तुम्हारा कुत्ता है यह ऊपर चढ़ रहा।
यात्रियों को दिक्कत होगी यह नहीं जा सकता है।
कुत्ता लाने की क्या जरूरत थी ?
यह बस कोई चिड़िया घर नहीं।
कंडक्टर – बढ़ाओ बस
कंडक्टर बस की खिड़की लगा देता और बस में हाथ मार देता है बस चलने लगती हैं मुझे सीट पीछे बाली मिल पाई थी,क्योंकि बस पहले से भरी हुई थीं।
मैं बैठ गया मैंने पीछे देखा टॉमी भाग रहा था
जैसे जैसे वो भाग रहा था वैसे वैसे मेरी आंखों के आंसू बढ़ते जा रहे थे ।
“ टॉमी ओझल सा हो गया मैं रोता ही रहा”
मुझे ऐसा लग रहा उतर के उसे गले लगा लू और अपने घर ले चलु…. इतनी दूर लाता तो कैसे लाता बस दूर आ गई थी।
फिर मैने खुदको कहा चलो यार पीके.. वो सही रहेगा
अचानक मेरे दिल से एक गाने की कुछ लाईन याद आई ”दोस्त मिलते हैं बिछड़ने के लिए…..”
आज भी टॉमी की भागती हुई तस्वीर मेरी मेरी आंखों से नहीं निकलती और वो मेरे दिल और दिमाग आज भी बसी हुई हैं जब भी वो पल याद करता हूं।
तो मेरी आंखें भर आती हैं जब कभी मैं तन्हा होता हूं तो वो पल हमेशा याद जाते हैं… मेरा प्यार दोस्त टॉमी।
लेखक पीके सूर्यवंशी “कृष्णा”
फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश)