सीमांचल के स्वतंत्रता सेनानी
✍🏼 विपिन वियान हिंदुस्तानी
सीमांचल के तीन जिले कटिहार, अररिया और पूर्णिया की स्थापना आजादी के काफी समय बाद हुई है। 2 अक्टूबर 1973 को कटिहार, 14 जनवरी 1990 को अररिया और किशनगंज जिला की स्थापना हुई है। अतः इन तीनों जिलों के स्वतंत्रता सेनानियों और वीर शहीदों के बारे में जानने और समझने के लिए अविभाजित पूर्णिया का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान पर समग्र अध्ययन और शोध आवश्यक हो जाता है। महात्मा गांधी द्वारा अंग्रेजों भारत छोड़ो के प्रस्ताव पारित होते ही पूर्णिया में व्यापक जन आंदोलन छिड़ गया। अगस्त क्रांति में पूर्णिया जिला के 50 स्वतंत्रता सेनानियों ने शहादत दी। पूर्णिया, कटिहार, अररिया, फारबिसगंज से 800 से अधिक सेनानी जेल गए। आठ स्थानों पर गोलियां चलीं। तीन थानों पर जनता ने अधिकार जमा लिया। जनता से 66500 सामूहिक जुर्माना वसूला गया। अगस्त क्रांति के समय पूर्णिया जिला के स्वतंत्रता सेनानियों के शौर्य पर प्रकाश डालते हुए ‘फ्रीडम मूवमेंट बिहार में इतिहासकार केके दत्त ने लिखा है कि पुलिस और सेना के दमन के बावजूद सरकार अगस्त क्रांति को कुचल नहीं सकी। सरकारी आंकड़े के अनुसार अगस्त क्रांति में बिहार में 562 स्वतंत्रता सेनानी पुलिस की गोली के शिकार बने थे, इसमें पूर्णिया जिला में शहीद हुए सेनानियों की संख्या 50 थी। भारत सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत गिरफ्तार किए गए हजारों सेनानियों और नेताओं में साहित्यकार व लेखक सतींद्रनाथ भादुड़ी, साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीनारायण सुधांशु एवं मुर्तजा मल्लिक थे। अगस्त क्रांति के देशभक्तों के बलिदान से प्रभावित होकर पुलिस के दारोगा मुतर्जा मल्लिक अपने पद को छोड़कर क्रांति की अग्नि में कूद पड़े और कारावास जीवन वरण किया।
9 अगस्त 1942 को पूर्णिया शहर के सिपाही टोला के पास 13 साल के बच्चा कुताय साह के साथ सैकड़ों लोग जब स्वतंत्रता संग्राम में अग्रेजों का विरोध कर रहे थे। उस समय अंग्रेज अधकारी ने कुताय साह को चेतावनी दी, लेकिन निडर कुताय साह ने अपनी शर्ट का बटन खोलकर अंग्रेजों को ललकारते हुये आगे बढ़ गए और कहा कि चलाओ गोली। तभी अंग्रेज अधिकारी ने उनके सीने में गोली मार दी जिस कारण वह वहीं शहीद हो गए। इसके बाद ध्रुव कुन्डू को भी अंग्रेजों ने गोली मार दी। दोनों शहीदों के शव को मधुबनी महावीर मंदिर के प्रांगण में लाया गया जहां उनके नाम पर ध्रुव कुताय उद्यान बना है, लेकिन यह ऐतिहासिक धरोहर बदहाली और उपेक्षा का शिकार है। सिपाही टोला मे बने कुताय साह स्मारक और बनभाग में बने ध्रुव कुन्डू का स्मारक भी जीर्ण शीर्ण अवस्था में है।