पितृपक्ष में पितृ तिथि को ही पिता संग पूर्वजों को पूजन में तील चावल शुद्ध जल अर्पण!
पाश्चात्य संस्कृति में फादर डे के प्रचलन को जहां जोड़ पकड़ाया जा रहा है वहीं पिता बाबू व बाबूजी को पितृ पक्ष में महत्व भी बढ़ता जा रहा हैं। थोड़ा देर के लिए यह कहना थोड़ा अटपटा सा लगेगा। लेकिन सोशल मीडिया पर भी लोग अपने फादर को यथोचित सम्मान देने का एक छोटा सा प्रयास जरुर करते रहे है। सोशल मीडिया में जब तपती हुई धूप में पिता के गोद में छांव सा सुकून मिलता महसूस करते है। आपाधापी से भरे जीवन में भी जब पिता के होने का एहसास होता है। जब प्रश्न उठता है कौन हूॅं मैं और कौन हो तुम तब पिता के होने का ही तो वजूद हो जाता है। वगैर पिता के जीवन कैसा और वगैर पिता का परिवार कैसा तब पिता जीवन की अनमोल-अनंत पूंजी हो जाता है। जब कोई राह नजर नहीं आती हो और जब हर तरफ छाती पर हताशा हो तब जीवन के उस मुश्किल दौर में पिता अटल हौसला बना दिखाई पड़ने लगता है।जब मन घबराता है। और जब कदम डगमगाता है। जीवन में घोर अंधियारा हो जाए तब पिता ही उम्मीद की एक किरण बन जाता है। जब रिश्ते टूट जा रहे हों जब अपने रूठते जा रहें हों तब पिता ही कभी ना छूटे रिश्तों की वो दौड़ बनता दिखाई पड़ जाता हैं।
पिता है तो आँखों के आँसू सोख जाता है।तभी तो पिता बच्चों के लिए दुनिया का हर सुख दाता बनता नजर आता है।
यदि घर में पिता है तो खिलौने और राशन सुगमता से आ जाता है। तब पिता माँ से ऊँचा और भगवान से भी ज्यादा महान हो जाता है।पिता परिवार के लिए हर मुश्किल से टकराता हैं और छोटी सी जिंदगी में सारे फर्ज अदा करता है।
पिता सर्द मौसम में सूरज की पहली धूप होता हैं।पिता जमीन पर भगवान का दुसरा रूप होता है। जब दुनिया कई जख्म देती हैं तब पिता हर जख्म के लिए मरहम होता हैं। अगर तुम्हारे पास अपार दौलत नहीं है सिर्फ पिता हैं तो तुम धनवान हो। पिता उलझती हुई राहों में सफलता का मार्ग होते हैं, जिसकी छांव में नन्हे परिंदे महफूज हैं वो विशालकाय वृक्ष पिता होते हैं।तपती हुई धूप में पिता छांव सा सुकून होता हैं।
आपाधापी से भरे जीवन में पिता किसी अपने के होने का अहसास कराता है। तभी तो पिता के निधन तिथि को पितृपक्ष में पिंडदान करने व पितृ तर्पण के लिए मिश्रित तील चावल के साथ शुद्ध जल अर्पित कर पूर्वजों का पूजन करने की परंपरा श्रृष्टि के शुभारंभ से सर्वत्र किया जाता रहा है।
हालांकि गया के फल्गु नदी के अलावा गंगा के उत्तरायण जल धारा में भी पितरों के तर्पण विधि को किया जाता रहा है। उदाहरण स्वरुप छपरा जिले के मां अम्बिका भवानी आमी में उत्तरायण गंगा में लोगों द्वारा डुबकी लगाई जाती हैं। पितृपक्ष एवं मातृपक्ष के तीन पीढ़ियों अन्य सगे संबंधियों को तील और चावल मिश्रीत जल अर्पित करने की परंपरा रही है। गौरतलब यह है कि इस मौके पर सप्त ऋषि को जौ युक्त जल अर्पित करने की भी परंपरा रही है।