देशज भाषा का लगातार देहज प्रयोग राष्ट्रीय भाषा हिन्दी के प्रति सम्मान!
देहज एवं देशज भाषा को गर्व से बोलना भाषा के ज्ञान की परिपक्वता का द्योतक है। हमारी मातृभाषा हिंदी का प्रयोग आज कण-कण में दिखाई पड़ना ही हमारे राष्ट्र और हमारी उपलब्धी हैं। अक्सर उच्च शिक्षा संस्थानों में हिन्दी दिवस 14 सितंबर के आलोक में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता हैं जो सालोभर चलते रहना चाहिए।
कुछ लोगों को हमें देहज व देशज भाषा को बोलने में शर्म महसूस होता हैं। भाषा और बोली कि सांस्कृतिक समृद्ध के लिए बेहद ही नुकसानदायक है। गुजराती मूल के गांधी जी ने हिंदी भाषा को लेकर गौरव महसूस किया।वे हमेशा हिंदी में अपने विचारों के सम्प्रेषण में अपने आप को गर्व एवं प्रभावशाली महशुस करते थे।
गुजराती मूल के होते हुए भी हिंदी के उत्थान के लिए गांधी जी का योगदान अतुलनीय है। हम सभी को उनसे प्रेरणा लेने की आवश्यकता है। हिंदी को और आगे बढ़ाने के लिए और अधिक प्रयत्न करने की आवश्यक्ता है। हमारी देशज भाषा हिंदी में निखार तभी संभव है जब हमारे देश के शिक्षक, लेखक और सांस्कृतिक कर्मी हिंदी की शुद्धता, परिशुद्धता और हिंदी को लेकर व्यवसाय को आगे बढ़ाएंगे।
हिंदी भाषा को कार्यक्रमों के उत्सव तक ही सीमित रखने के बजाय प्रतिज्ञा भी लेने की आवश्यकता होती हैं। हमें अपनी हिंदी भाषा बोलने में शर्म नहीं गर्व महसूस करना चाहिए। जिससे की हमारी हिंदी भाषा को विश्व में ससम्मान ,स्थान और प्रतिष्ठा मिलें।
मातृभाषा कण-कण में दिखाई पड़नी चाहिए। लेकिन आज कल के बच्चों की अंग्रेजी भाषा के तरफ रुझान की जगह विद्यालय, घर और कार्यस्थल सहित सभी जगह हिंदी भाषा के महत्व को उन्हें समझाने की आवश्यकता पड़ रहा है।ताकि आने वाले दिनों में बालक अपनी भाषा को अधिक से अधिक प्यार और सम्मान दें सकें। हमें अपनी भाषा को एकजुट होकर आगे बढ़ाने की आवश्यकता है जिससे विश्व में यह प्रथम स्थान पर पूर्णतः स्थापित हो सके। हालांकि हमें सभी भाषाओ को सम्मान देना चाहिए। गौरतलब है कि हिंदी भाषा देशवासियो को आपस में जोड़ने का काम करता है। राष्ट्रभाषा से हमारा हमारे राष्ट्र का गौरव जुड़ता हैं ना की किसी अन्य देश की भाषा से जुड़ेगा।
देशज भाषा के प्रति हम आज भी गंभीर नहीं हैं जो की चिंतजानक विषय हैं। हमें अपनी भाषा के प्रति जागरूक होना चाहिए और इस दिशा में विस्तृत शोध से ही हम अपनी राष्ट्रीय मातृभाषा को उच्च स्थान पर पदस्थापित किया जा सके पहल करना चाहिए।
भाषा के महत्व पर चर्च हमेशा करना श्रेयस्कर हैं। राष्ट्रीय मातृभाषा को सरल रूप में ग्रहण कर दूसरे को सरल रूप में प्रयोग के लिए प्रेरित करना चाहिए। चाहे वह राज्य भाषा हो या अन्य भाषा हो उसे सीखने और समझने की उत्सुकता जगा के रखनी चाहिए। साथ ही अपनी अपनी मातृभाषा को हमेशा विशेष महत्व देनी चाहिए, जिससे हमारी पहचान मूल रूप से बनीं रहे। लेकिन लाख प्रयास के बाद भी हम देहज एवं देशज भाषा के धड़ल्ले से प्रयोग से कतराते हैं जो चिंतनीय हैं। राष्ट्रीय एकता के लिए भी हमें राष्ट्रीय भाषा हिन्दी को अमल में लाना श्रेयस्कर होगा।