*******************************
 लोभी-क्रोधी-ढोंगी मानव खोखा है!
*******************************
जिसको जितना हद में मिलता मौका है,
आगे  बढ़ता   रहता  दे  कर  धोखा  है।
दो दिन का है  जीवन मेला दुनिया का,
पल  में  जीना -  मरना  जैसे झोंका है।
ज्वारों; भाटो  सा घटता बढ़ता जीवन,
सागर की  लहरों को  किसने रोका हैँ।
दरमियाँ दरिया फँसती नैया मानव की,
इंसानो   की   देखी    टूटी   नोका  है।
मनसीरत  मन  मंदिर  मानवता  पूजों,
लोभी , क्रोधी ,ढोंगी मानव  खोखा है।
****************************
यादें कोमल ह्रदय को चीरती
****************************
जूतें  घिसते घिसते घीस जाएँ,
कांटों से नंगे पैरों को है बचाएँ।
बात बढ़ते- बढ़ते बढ़ जाए तो,
लड़ाई- झगड़े,फ़साद करवाए।
रात काटते-कटते कट जती है,
बे-शक  करवटें बदलती जाएँ।
बातें बनती-बनती बन जाती हैँ,
विगड़े -उलझें किस्से सुलझाए।
धरती हिलते-हिलते हिल जाती,
अगर नभ बिजलियाँ है गिराए।
भूमि पल भर मे सागर बनती,
नभ  से बादल  नीर  बरसाए।
यादें  कोमल ह्रदय को चीरती,
बंदा तड़फ  - तड़फ मर जाए।
मनसीरत सूखा तिनका देखते,
आग  लगती-लगती लग जाए।
************************

