मुहब्बत
/// जगत दर्शन साहित्य
खता मेरी क्या थी
जो हमसे रूठ गये।
मोहब्बत करती थी तुम
तो क्यों रूठ गये।
इरादा रखते थे तुम
हमारे साथ रहने का।
मगर ऐसा क्या हुआ
जो दिल तोड़ लिया।।
अगर थी तुम सही
तो मोहब्बत करना था।
हमारे दिल में तुम्हें
निश्चित ही रहना था।
क्योंकि मोहब्बत दिलसे
और प्यार से होती है।
ये रंग रूप और
उम्र को नहीं देखती।।
रंग मोहब्बत का यारों
हर उम्र में चढ़ता है।
नशा मोहब्बत का यारों
बिना पिये भी चढ़ता है।
जो मोहब्बत कर न सके
उनका जीवन नीरस होता है।
इसलिए मोहब्बत करने का
मन हर किसी का होता है।।
दिल पर बस यारों
किसी का नहीं चलता।
जिस पर आ जाये
उससे हो जाता है।
बहुत मिलती है सुंदरियाँ
हमें जीवन में अपने।
मगर प्यार उसी से होता
जिस पर दिल आ जाए।।
मोहब्बत ऐसी होती है
जो हर दिलमें बसती है।
मोहब्बत के दीपक भी
हर उम्र में जलते है।
ये वो दीपक है यारों
जो हर दिलमें जलते है।
इसलिए तो मोहब्बत का
जाती धर्म नहीं होता।।