बनारस नगरी
शिक्षिका: राजकीय मध्य विद्यालय बघौना, सिवान
आवास: गोपालगंज, बिहार
/// जगत दर्शन साहित्य
तुम्हरी महिमा अपरम्पार।
ना करत हौं,
इंसानों में भेदभाव।
तरणी हौं,
करत सबकी नईया पार।
सुन्ह्यो भईया,
कहत गोसाईं तारण हो तुम।
तुम्हरी नगरी मे,
जो लेवत अन्तिम सांस,
उसकी खातिर,
खोलत हौं बैकुंठ द्वार।
तुम ले जैहौँ,
सबको बैकुंठ धाम,
बाकि सब रहियौ,
ऐही पार।
तबही तो कहत हौं,
सब दिन सेवले कासी,
मरे के बेर भईले मगहर के बासी।
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