जिंदगी की जंग
/// जगत दर्शन साहित्य
पेड़ों की छांव से
गुजरते
राहों में चलते रहे
रोज तपते
कभी प्यार में
उस तरह उफ़ नहीं
किया करते
करवटें बदलते
पेड़ों की छांव में
आकर
दुपहरी में हवा से
बातें किया करते
कितने साल बीते
जिंदगी की जंग
अकेले लड़ते
तुम पर सारी हंसी
दिलोजान से कुर्बान
करते
तुम्हें प्यार के मैदान में
अक्सर अपने पास
देखते
मुहब्बत का राज
जो रोज खोलते
प्यार की तराजू पर
आकर
इंसाफ के बारे में
किसी को वे
कुछ नहीं कहते