तुमको देखा तो....
/// जगत दर्शन साहित्य
✍️रति चौबे (न्यूजीलैंड वैलिग्टन)
तुमको देखा तो हुई हतप्रद-
सालों से खोज रहे थे नयना
इर्द-गिर्द ही रहते थे तुम,
मेरे होते हर पल आभासित से यूं।
भीनी-भीनी आती महक तेरी-
आखों से ओझल थे प्रिय तुम
धुंधली सी प्यारीआकृति तेरी
आती जाती कर देती बावरी-
छटपटाहट सी रहती हरदम-
पर कभी नहीं आए सन्मुख
आज देखा जब तुम्हें सामने
सुध-बुध खो बैठी मैं अपनी।
तुमको देख रुक गई धड़कने
तुमको छूं झूमी मलय पवन-
बिखरी मस्त बहारे संग मेरे-
लगे कर्णप्रिय भौरों का गुंजन।
अब तो चांद लगे भी -मोहक-
बिखरी चांदनी है अंग-भावन
बियावान जीवन भी खिला यूं
कदम थिरकते बिन सुर-ताल
तुझे देख लगे आये ऋतुराज"
अधर गा रहे गीत" मधु-मास"
मन मेरा हुआ बसंत बावरा यूं
तेरा-मेरा जन्मों का नाता सच
यूं ही नहीं तुमको देखा
तो हुई मै हतप्रद!!!