अकेला नाविक चल पड़ा!
/// जगत दर्शन साहित्य
अकेला नाविक चल पड़ा!
✍️ कवियित्री: किरण बरेली
लेकर अपनी  खाली नौका
उस पार दूर पर्वतों के पीछे 
शायद  मंजिल है उसकी।
धुंध की  परत दर परत दिख रही 
मंजिल का निशा ढूँढना बाकी अभी 
तन्हा सफर कैसे  बिताए
चलो कुछ कुछ बतियाये।
इन मचलती लहराती लहरों से 
खुले नीले आसमाँ तले
निर्मल जलधारा के दर्पण में 
अपनी प्रतिछाया निहार  लूँ।
मजबूती थामें बाहों में 
मस्ती का तराना गुनगुनाऊं
खाली खामोश सी
वीरान उदास मेरी नौका।
ख्वाबो ख्यालों संग
चला जा रहा हूँ 
मैं भर लूँ इसमें
सुनहरी धूप का खजाना 
खुशबू उंड़ेलती हवाओं को
तितलियों की तरह 
बंद मुट्ठी में रख लूँ।
चला जा रहा हूँ उस पार 
शायद चाँद सितारों से 
मुलाकात हो जाए।
इस दिलकश नज़ारों में 
दिल मेरा रुमानी हो रहा है 
मुझे पता ना चल पाएगा 
सुहाना सफर ख्यालों में गुज़र जाएगा।
***********
