पीला रंग और तुम!

✍️ कवियित्री: किरण बरेली
/// जगत दर्शन साहित्य
पीला रंग!
एक अनाथ लड़की को पहली बार,
नये कपड़ों का नया अहसास मिला।
पीले रंग की फ्राक।
उस पीले रंग ने लड़की के मन को,
पीले रंग में ही रंग लिया।
तुम
तुम्हारा आना उत्सवों के जैसा है।
दिवस - तिथियों की गिनती हम क्यूँ करे?
सभी तारीखों में तुम ही तुम समाए हो।
भाषा पीड़ा की।
एक तेरी ही तकलीफ नहीं।
तकलीफों की लगी कतार है।
तेरे सर पर छत का साया नहीं
तो क्या शिकायत?
खुले आसँमा तले जी रहे।
मुफलिसों को नज़र अंदाज ना कर।।
राग प्यार का!
मेरा रोम रोम पिघल जाता है।
साँवला रंग मेरा गुलाब हुआ जाता है।
तुम्हारे अहसास के छुअन से
प्यार का राग छिड़ जाता है।।