✍️सुखविंद्र सिंह मनसीरत
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दिल के दायरे मे तस्वीर बना दो तुम
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शब्दों की सुंदर तहरीर बना दो तुम,
हासिल हो मंजिल तदबीर बना दो तुम।
हाथों में बंधी बेड़ी खुली नहीं है,
बिगड़ी जो मेरी तकदीर् बना दो तुम।
हर दर पर बेदर सा पर कभी न हारूँ,
दुश्मन जो काटे शमशीर बना दो तुम।
आगे पीछे फिरता मन तेरे ख्यालों में,
दिल के दायरे में तस्वीर बना तो तुम।
उड़ता ही जाऊं आकाश जो खुला हो,
जड़ को झट बाँधे जंजीर बना दो तुम
मनसीरत ने जंग मे पीठ ना दिखाई,
हारे ना रण में बलवीर बना दो तुम।
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तन्हाँ तन्हाँ मन भटकता है
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तन्हाँ - तन्हाँ मन भटकता है,
तिनका आँखों में अखरता है।
उनके जाने की खबर सुनकर,
मुश्किल से लम्हा गुजरता है।
देखा देखी करवट दिखाने से,
मौसम पल पल में बदलता है।
संभल संभलकर कदम रखते,
हाथों में आ कर फिसलता है।
कोई तो होगा निकल भागे,
बंदा धंधे सा बिगड़ता है।
बीती यादों के हिलोरों मे,
बहती लहरों सा उछलता है।
सोने सा तप यार मनसीरत,
यौवन उतना ही निखरता है।
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बदल गए इस कदर पता न था
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बदल गए इस कदर पता न था,
परत गई है नज़र पता न था।
न रोशनी ही मिली न अंधेरा,
तमस गया है पसर पता ना था।
गया हमें छोड़ कर अकेला ही,
दिखा मिरे ही मगर पता ना था।
तबाह होगा चमन न सोचा था,
उजड़ चुका वो नगर पता ना था।
उफ़ान पर जलस्तर न मनसीरत,
उखड़ गया है शज़र पता ना था।
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साँसों ने तड़फना कब छोड़ा
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साँसों ने तड़फना कब छोड़ा,
फूलों ने महकना कब छोड़ा।
लैला ने बेशक आना छोड़ा,
मजनू ने टहलना कब छोड़ा।
कलियों से भरा उपवन सारा,
भँवरों ने बहकना कब छोड़ा।
चाहे देख ना पाया आशिक,
गौरी ने मटकना कब छोड़ा।
कालें बादलों के छाये साये,
सूर्य ने निकलना कब छोड़ा।
दिल दीवाना सा मनसीरत,
भावों ने मचलना कब छोड़ा।
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चुप रहने की आदत है
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गम सहने की आदत है,
चुप रहने की आदत है।
लब को कैसे मैं रोकूँ,
कुछ कहने की आदत है।
आँखों में झलके पानी,
अश्रु बहने की आदत है।
साथी मिलता ना राहों में
यूँ चलने की आदत है।
कोई कुछ भी ना कहता
बस डरने की आदत है।
मन में न चाहत जीने की,
अब मरने की आदत है।
जीते जी हारा मनसीरत,
झट हरने की आदत है।
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