मन! बाल मन!
✍️किरण बरेली
भारतीय संस्कृति ओढ़
तिलक मस्तक सजाए
माँ देवी का आशीष लिए
मंजिल की आस लिए
नन्हें कदम चल निकले।
मासूम बचपन की यात्रा
कदम दर कदम चले
फिर ठिठक कर रूक गए
देख तमाम गाड़ियां
आँखों में कुछ सपने जगे।
सुखों के अक्षरों से लिख रहा
भविष्य उजला। उजला
नन्हा मन ही मन
शायद मनन कर रहा।
मंजिल का पता देंगी
मेरी शिक्षा का उजियाला
माँ के दियो उपदेशो का
मैनें तो पहाड़ा रट लिया।