सात अक्टूबर को ही मनाया जाना शुभ होगा जीवित्पुत्रिका व्रत।
जीवित पुत्रिका व्रत को लेकर व्रतियों में संशय की स्थिति बनी हुई है। कुछ ब्राम्हणों द्वारा छह अक्टूबर को व्रत मनाए जाने की बात कही जा रही है तो कुछ लोगों को द्वारा सात अक्टूबर को। व्रतियों में उतपन्न संशय को देखते हुए यह कहना है कि सप्तमी युक्त अष्टमी में जीवित्पुत्रिका व्रत करने का कोई विधान नही है। ऐसे में अश्विन मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को जीवित्पुत्रिका व्रत मनाया जाना ही उत्तम होगा। इस व्रत में माताएं अपने संतान की लंबी उम्र एवं सुख सौभाग्य की प्राप्ति के लिए निर्जला व्रत करती हैं।
क्या करें इस दिन?
छह अक्टूबर को नहाए खाए करें। अर्ध रात्रि के पश्चात अपनी परंपरा के अनुसार चील सियार तथा पितरों को प्रसाद अर्पण करें। रात्रि तीन बजे तक कुछ और अल्पहार भी ग्रहण कर सकती हैं व्रती। सात अक्टूबर को निर्जला उपवास रखें अगले दिन आठ अक्टूबर को सूर्योदय के उपरांत गो दुग्ध से पारण कर व्रत का अनुष्ठान पूर्ण करें। सूर्योदय काल पारण के लिए उत्तम माना जाता है। अतः नवमी अर्थात आठ अक्टूबर को सुबह सूर्योदय काल में पारण करना उत्तम रहेगा।