/// जगत दर्शन साहित्य
✍️ सुखविंद्र सिंह मनसीरत, खेडी राओ वाली (कैथल)
/// जगत दर्शन न्यूज
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वो खफ़ा हम से इस कदर
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वो खफ़ा हम से हैँ इस कदर,
अब कभी आते ना इस ड़गर।
लो सुनो आ कर तुम इधर,
राह देखूँ कब होगी खबर।
शाम होने को आई सनम,
ताकती रहती तुम को नजर।
चाँद तारे धरती पर गगन,
हाथ में होगा प्यारा पहर।
पास हो कर भी है दूर वो,
ढूंढता रहता हूँ दर बदर।
होश खोई सुध बुध भी नहीं,
जानता हूँ है उन का असर।
यार मनसीरत जिद्द पर अडा,
काश होता अपना हमसफ़र।
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चिंता चिता समान है
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चिंता चिता समान है,
गम से भरी दुकान है।
जब हो दुखी शरीर से,
नाकाम भी पुराण है।
शकलें दिखे उदास सी,
वो घर नहीं मकान है।
थोड़ा नहीं विराम हो,
मिलती बड़ी थकान है।
छलनी हुआ है तीर से,
खाली पड़ा कमान है।
मनसीरत रहे ढूंढता,
जो आखिरी निशान है।
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