प्रेम और दोस्ती, तड़फ रहा दिल हिज्र में तेरे!
/// जगत दर्शन साहित्य 
✍️ सुखविंद्र सिंह मनसीरत, खेडी राओ वाली (कैथल)
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******* प्रेम और दोस्ती *******
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हम प्रेम को तराजू में तोलते रहे,
वो हमें दोस्ती के रस में घोलते रहे।
प्रेम दोस्ती का कभी भी पूरक नहीं,
सदा से ही प्रेमी प्रेम में डोलते रहे।
मन ही मन भावों को था कैद रखा,
अंदर ही अंदर बंद बूहे खोलते रहे।
दोस्ती की आड़ में अधूरा प्रेम रहा,
खुद ही खुद से हाँ ना बोलते रहे।
दिल दिमाग़ में एकता हो ना सकी,
बढ़ते कदमों को राह में रोकते रहे।
मनसीरत हिम्मत हारकर बैठ गया,
किस्मत को नाहक ही कोसते रहे।
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तड़फ रहा दिल हिज्र में तेरे
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तड़फ रहा दिल हिज्र में तेरे,
सपने देखूँ दिन- रात मै तेरे,
मन में  जागे प्रेम  के अंकुर,
उर्  भावों का सत्कार करो।
बीत ना  जाए चढी जवानी,
रूत  आई  प्यारी  मस्तानी,
पुरी हो  अफ़साना कहानी,
नाहक ना तुम  इंकार करो।
उर.............................
काश  कभी मेरी हो जाओ,
यूँ  कहीं   हमें  मिल जाओ,
घूंघट कर तुम  ना शर्माओ,
पायल की आ झंकार करो।
उर.............................
दर  तेरे  हूँ  मै  आन  खड़ा,
घुटनो  के  बल हूँ द्वार पड़ा,
पहरा  जहाँ पर बहुत कड़ा,
ले  बांहों में गिरफ्तार करो।
उर.............................
परियों सा सुंदर  मुखड़ा है,
मुखड़ा चाँद  का टुकड़ा है,
मुट्ठी मे दिल आ अटका है,
प्रेम निवेदन स्वीकार करो।
उर............................
काली घटाएँ नभ में  छाई,
बेलों जैसी सघनी परछाई,
आगे  कुआँ  पीछे है खाई,
कुछ हम पर उपकार करो।
उर............................
चातक सा हूँ बहुत प्यासा,
पूर्ण कर  दो अधूरी आशा,
मनसीरत  की  अभिलाषा,
मँझदार से  बेड़ी  पर करो।
उर............................
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