हम जियें या मरें तुम्हें क्या फर्क है?
✍️ सुखविंद्र सिंह मनसीरत, खेडी राओ वाली (कैथल)
****** /// जगत दर्शन न्यूज ******
हुई हम से खता, फ़ांसी नहीं
**********************
हुई हम से खता,फांसी नहीं,
मिली है मौत पर माफ़ी नहीं।
बड़ी थी शौहरत जो खाक है,
सुनाई जो सजा काफ़ी नहीं।
खुदा बख्शा पिटारा रूप का,
परी सी सुंदरी दासी नहीं।
खिला यौवन भरी खुश्बू बलां,
किया ना पाप हम पापी नहीं।
मिटा दी साख दे कर दाग से,
खुई है आबरू यारी नही।
मिलाया हाथ मनसीरत कभी,
दिलाई जान की बाज़ी नहीं।
***********************
गर लगे आग तुम बुझाना मत
***********************
गर लगे आग तुम बुझाना मत,
ढूंढता राह कुछ बताना मत।
वो खड़ा साथ सदा बन हमदम,
तुम कभी प्रेम को जताना मत।
सोच लो और देख सब कुछ,
वो अगर पास हो बुलाना मत।
हर समय भागता रहा खुद से,
आ रुका हार कर भगाना मत।
जो कहे आकर यार मनसीरत,
मैं जला हूँ बहुत जलाना मत।
************************
हम जियें या मरें तुम्हें क्या फर्क है?
***************************
हम जियें या मरें तुम्हें क्या फर्क है,
हम रहें या मिटें तुम्हें क्या फर्क है।
बेरहम बड़े हो दिलबर दया न आई,
हम मिले या लड़े तुम्हें क्या फर्क है।
दो कदम न चल पाये कैसी डगर है,
यूँ रुकें या चलें तुम्हें क्या फर्क है।
दिल जलाकर गये बेवफाई दिखाई,
कुछ कहें या सुनें तुम्हें क्या फर्क है।
हैँ शमा को जला मनसीरत बुझा है,
हम जलें या बुझे तुम्हें क्या फर्क है।
********************
आँखों से ना दूर होती!
********************
आँखों से ना दूर होती,
हर पल संग वो हूर होती।
यादों के झरोखों मे भी,
साथ खड़ी वो नूर होती।
पल भर भी रह ना पाऊँ,
हाजिर दर जरूर होती।
खाती, पीती,सोती,रोती,
मीठी जैसे अँगूर होती।
ख्यालों में है छाई रहती,
खट्टी-मीठी खजूर होती।
मदहोशी में खोई- खोई,
थोड़ी सी मगरूर होती।
मनसीरत दिल की रानी,
हस्ती बड़ी मशहूर होती।
*******************
फ़लक से उतरी नूर मेरी महबूब
*******************
फ़लक से उतरी नूर मेरी महबूब है,
परियों सी सुंदर हूर मेरी महबूब है।
चढ़ जाए इश्क़िया रंग तन-मन में,
इश्क के नशे में चूर मेरी महबूब है।
अखियों में छाई सूरत वो मूरत सी,
एक पल भी न दूर मेरी महबूब है।
अंग-अंग महकता है ख़ुश्बो भरा,
यौवन से भरा तंदूर मेरी महबूब है।
पी लूं होठों से जाम मोहब्बत का,
रसभरी जैसे अंगूर मेरी महबूब है।
नशीली निगाहें बहकाती है पथ से,
मेरे जीने का गुरूर मेरी महबूब है।
मनसीरत प्यारी दुलारी है हसीना,
फूलों लदी भरपूर मेरी महबूब है।
**************************
गम को यूं हलक में पिया कर!
*************************
गम को यूँ हलक में पिया कर,
खुशियाँ बाँट कर यूँ जिया कर।
तरसे दो नयन ढूंढते हैँ हारे,
बांहों में जकड़ झट लिया कर।
मुश्किल सी घड़ी आ गई सिर,
कुछ हम पर रहम भी किया कर।
जब रिसने लगे याद है जहर बन,
दोनों हाथ तू खोलकर दिया कर।
मनसीरत गिला कुछ भी नहीं था,
दिल का हर ज़ख्म भी सिया कर।
****************
तुम हुए ना हमारे
****************
तुम हुए ना हमारे,
हम हुए ना तुम्हारे।
कैसे बिना साथ तेरे,
पल पहर हैँ गुजारे।
यूँ बसर ना हमारा,
हो सदा तुम सहारे।
राह दे ना दिखाई,
हैँ खड़े दर किनारे।
मनसीरत बेवफाई,
हैँ उसी पथ पधारे।
**************
राज सारे दरमियाँ आज खोलूँ
*************************
प्यारी सी हरकत पर क्या बोलूँ,
ऑंखें हैँ शरबत सी रहूँ डोलूँ।
तपिश से जलता रहे तन-मन,
राज सारे दरमियाँ आज खोलूँ।
भोली सूरत सीरत क्या कहने,
मन पगला पग पग पर डोलूँ।
दागी चेहरा छुपा भी ना पाऊँ,
जो भी हैँ दाग़ मुख पर धो लूँ।
मनसीरत सह ना पाये हर गम,
जी चाहता जी भर कर रो लूँ।
************************
पी कर मय महका कोरा मन
***************************
पी कर मय महका कोरा मन,
मदिरा से चहका सारा तन।
फूटी कौड़ी समझूँ राजा,
बेशक ना बचता कोई धन।
हाला होती गम पर भारी,
खुशियों से खिलता है कण-कण।
मदिरालय में मदिरा का प्याला,
कहता फिरता करलो थोड़ा फन।
उन्मुक्त नभ मे अनुरुक्त साधक,
घोड़ा फुदके जैसे कानन।
मनसीरत मस्ती में नाचे झूमें,
भँवरा मचले सरपट उपवन।
**************************
वक्त ही वक्त तन में रक्त था
*************************
मैं तुम हम थे पर वक्त न था,
मिलने को कभी अनुरक्त न था।
मिला कभी ना वक्त हमें ज़रा,
दो पल मिलूं तुमसे वक्त न था।
हम हो गए थे आज़ाद वक्त से,
मिले न आप,शायद वक्त न था।
मैं तुम दोनों गिरफ्त से बाहर,
व्यस्त वक्त के पास वक्त न था।
वक्त भी था और मैं तुम हम भी,
हसरतों के पास तब वक्त न था,
मनसीरत देखता रहा रात दिन,
वक्त ही वक्त तन में रक्त ना था।
************************
खुद को खुदा समझते लोग हैँ
**************************
खुद को खुदा समझते लोग हैँ,
खुद के किरदार से गिरते लोग हैँ।
खुद में खुदा देखना फितरत रही,
औरों मैं दानव को देखते लोग है।
खुदा की रहमत का असर देखो,
उन्हीं के नाम पर लड़ते लोग हैँ।
कोई किसी का नहीं हुआ जहां में,
फिर क्यों किसी मर मरते लोग हैँ।
मौकापरस्ती का आलम तो देखो,
हर रोज नई राहें बदलते लोग हैँ।
मनसीरत पंछी बन उड़ता नभ में,
बादलों संग क्यों विचरते लोग हैँ।
***************************