"हिंदी-दिवस" पर "क्योंकि मै हिंदी हूं!"

✍️ रति चौबे (नागपुर, महाराष्ट्र)
/// जगत दर्शन न्यूज
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क्यूं मनाते हर साल हिंदी-दिवस-
साल में एक बार ही क्यूं-?
क्यूंकि मै एक "रिवाज हूं"
अपने ही घर में मैं "बेगानी"
मैं अस्तित्वहीन हूं-
राज्यभाषा हूं/ राष्ट्रभाषा नहीं
मेरा क्या मान/क्या मोल है ?
मेरा स्वाभिमान,अहंकार क्या
क्यूंकि मै हिंदी हूं-?
घर/समाज/ में मान खैरात में
परिवार के बीच'सेफ्टिटेंक' हूं
क्या वाकई "लाइलाज" हूं
विश्व हिंदी सम्मेलनों में 'मैं'-
दिखावा हूं,पखवाड़ो तक ही
सीमित हूं--
मुझे यह सजाअपनों ने ही दी
समय के साथ निकली बीती-
तारीख हूं-मै एक प्रश्नवाचक!
पर ना मैं हारुंगी/ना टुंटूगी-
मै शाश्वत हूं/ प्राणवायु हूं-
मै अमर हूं/कालजयी हूं-
दिग्दिगंत तक नक्षत्रों सी-
चमकूंगी--क्यूंकि मै "हिंदी"हूं
हिंदी हूं,हिंदी हूं--'
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