जिंदगी के हाथो वफ़ा मजबूर हुई!
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जिंदगी के हाथों वफ़ा मज़बूर हुई,
यूँ जमाने भर में जफ़ा मशहूर हुई।
रोज ही तुमने तो सताया है बहुत,
यूँ गमों मे जल कर दुखों से नूर हुई।
हूँ खड़ी अब भी मुश्किलों की घड़ी,
आम ख्यालों से भी बहुत ही दूर हुई।
ये भरा मन भी खोखला भावों बिना,
रहगुज खाली सी खुशी भरपूर हुई।
ढूंढता मनसीरत सदा संगी साथ हो,
साँझ सी तन्हाई दिलों की हूर हुई।
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तुम और मै धूप - छाँव जैसे
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तुम और मै हैँ धूप-छाँव जैसे,
शहरी हुए अब दूर गाँव जैसे।
करते भला हम प्रेम यार कैसे,
हम थे नहीं तेरे यूँ पाँव जैसे।
आवाज ऊँची पास ना करो यूं,
लगती जुबानें काँव-काँव जैसे।
दो बोल बोलो तो सही सलीके,
हर शब्द तेरा झाँव-झाँव जैसे।
अरमान मनसीरत रहे अधूरे,
खाली गये वो द्वार दाँव जैसे।
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