परियों से भी प्यारी बेटी!
/// जगत दर्शन साहित्य
✍️ सुखविंद्र सिंह मनसीरत, खेडी राओ वाली (कैथल)
  /// जगत दर्शन न्यूज
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परियों से भी प्यारी बेटी!
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परियों से भी   प्यारी बेटी,
खुशियाँ  बांटे  सारी  बेटी।
जायजाद को लेते   हैँ बेटे,
पर पुत्रों  से है न्यारी  बेटी।
पापा के आंगन  की  बेला,
संस्कार भरी संस्कारी बेटी।
कोमल उर है सुंदर नखरा,
फूलों  सी  फुलवारी बेटी।
नेह बाँटती भर भर प्याले,
जाऊँ सदा बलिहारी बेटी।
दो घरों में खुशियाँ भरती,
फिर  भी  है बेचारी  बेटी।
बापू के है सिर की पगड़ी,
घर की  है  सरदारी  बेटी।
हर दम गम में खोई-खोई,
दुख दर्द भरी दुश्वारी बेटी।
भोली भाली  हैँ  आचारी,
बेटों   से  गुणकारी  बेटी।
मनसीरत जग में नर बंदर,
दानव  नर  से  हारी  बेटी।
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