समय कठिन
/// जगत दर्शन साहित्य
कठिन वक्तों में जब दर्द की चिंगारी उठती है तब दर्द कांटे बन कर चुभने लगते है…: किरण बरेली
कठिन वक्त के वो नुकीले शूल,
अभी तलक चुभते है।
कितनी भी शीतल छाँव मिले,
फिर भी पाँव मेरे जलते हैं।
धरा से अंबर तलक घुला जह़र है,
अमृत बरसाता सावन,
अब कँहा बरसते हैं।
खोने की व्यथा से,
आहत हुआ अन्तर्मन।
समय भी क्षण क्षण
रेत से, फिसलते हैं,
बगैर ईट गारो से जो आशियाना बनाया,
धुँधलाए दर्पण में अब नहीं दिखते हैं।।
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