💐 साहित्य💐
यही सुदृढ़ घर की माली!
रचना:
सुचिता रुंगटा 'साई'
बेतिया (बिहार)
ब्यथा सुनाऊॅं नारी की अब,
कथा पुरानी है रहती।
निज कुटुंब के कारण ही तो,
धूप-छाॅंव सब कुछ सहती।।
पैरों में इसके जूती नाहीं,
चाल चले हैं मतवाली।
अब मुस्कान धरे मुख पर है,
यही सुदृढ़ घर की माली।।
देख धरे सिर पर दो मटकी,
भुज से भी रही पकड़ती।
निज कुटुंब के कारण ही तो,
धूप-छाॅंव सब कुछ सहती।।
कदम-कदम पर कंकड़ मिलते,
चलने पर वो भी गड़ते ।
देखो अपनी पीर छुपाती
पैरों जो छाले पड़ते ।।
फिकर करे नाहीं अपनी जो,
धवल ख्याल सबका रखती।
निज कुटुंब के कारण ही तो,
धूप -छाॅंव सब कुछ सहती।।
हर मुकाम को हासिल करती,
खुशी-खुशी सब कुछ सहती ।
अजब निराली देखो प्रतिभा,
हर उड़ान खुद ही भरती।।
पानी भर कर हरदम लाती,
सेवा करना हिय धरती।
निज कुटुंब के कारण ही तो,
धूप-छाॅंव सब कुछ सहती।।
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