नारी-पुरूष की व्यथा!
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नारी व्यथा को नारी ही जानते हैं,
कौन पुरूष जान सका है?
वही पुरूष नारी व्यथा को जाना है,
जो नारियो संग सदा रहा है।
उस पुरूष से कभी कोई पूछे जरा,
जो नारियो के संग जीवन है गुजारा।
कभी पिता तो कभी भाई बनकर,
बेटा कभी तो,पति बनकर।
जो दिया है सदा नारियों का साथ,
जो रहा है सदैव निस्वार्थ।
नारी नाम तो है सिर्फ एक,
लेकिन रूप उसका है अनेक।
माँ बेटी बहन और पत्नी,
वक्त वक्त पर है वो बनी।
जिम्मेवारी भी नारियो ने खूब संभाली, है
जब भी मुसीबत अपनो मे आई है ।
दोनो कुलों के बीच का वो डोरी है
रिश्ते ठीक से उसे निभाना भी जरूरी है
सबका ख्याल वो एक सा रखती है
नारी व्यथा को नारी ही जानती है ।
पुरूष वही, नारी का व्यथा जानते हैं,
जो निस्वार्थ भाव से फर्ज निभाते हैं
कभी बेटा तो कभी पिता बनकर,
कभी भाई तो पति बनकर।
नारी के सम्मान हेतु
सच झूठ, झूठ सच का बनाकर सेतु।
नारियो के सुख दुख मे भागी बनकर,
कंधे से कंने मिलाकर
नारियों संग संसार बसाता है
सच मे वही पुरूष, नारियो की व्यथा समझता है।
पुरूषों की भी व्यथा कम नही है,
ये भी एक निस्वार्थ नारी ही समझती है,।
जो पुरूष,घर परिवार हेतु, मुश्किलें से टकराकर
आराम देने हेतु प्रयासरत रहता है।
उसे समझने हेतु एक नारी के सिवाय,
कोई और नही जान सकता है
नारी पुरूष, पुरूष नारी दोनी की व्यथा समान है,
जो एक दुजे को समझ ले वही महान है।
चुन्नू साहा
(पाकूड़ झारखण्ड)
संपर्क नम्बर: 9771223461