विनम्र श्रद्धांजलि
सहरसा के पूर्व विधायक संजीव कुमार झा का देहांत!
लेखक: राजीव कुमार झा
संजीव कुमार झा को सहरसा में अपने सबसे पहले दोस्त के रूप में याद करना चाहूंगा और जिला स्कूल, सहरसा में हम दोनों छठी कक्षा की प्रवेश परीक्षा पास करने के बाद यहां दसवीं कक्षा तक इस स्कूल में एक साथ ही पढ़ते रहे।संजीव का सहरसा में अपना घर था और उसके पिता पचगछिया के पास स्थित अपने गांव बिहरा से आकर उस समय गंगाजला मुहल्ले में जिला स्कूल के सामने रेलवे पटरी के पार फूस के एक बड़े घर को बनाकर यहां कचहरी में वकालत किया करते थे। राजनीति में संजीव कालेज में पढ़ने के दौरान सक्रिय हुआ था और मुझे यह सब उस समय ज्यादा समझ में नहीं आता था। लेकिन एक बार सहरसा धर्मशाला में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की एक बैठक में मुझे उसके साथ जाने का मौका मिला था। इसके बाद मैं पढ़ने के लिए दिल्ली चला गया था और वहां से साल छह महीने के बाद जब लौटकर आया तो मेरे पिता जो सहरसा में मजिस्ट्रेट थे। वह रिटायर हो चुके थे और इसके बाद वह गांव आ गये थे। तब से संजीव से मेरी कोई मुलाकात नहीं हुई। सात - आठ साल पहले जब पावापुरी के जीआईपी स्कूल में अध्यापक के तौर पर मुझे कुछ दिन पढ़ाने का मौका मिला तो यहां प्रभाकर से भी मेरी मुलाकात अक्सर होती रही। वह नवीं कक्षा में यहां पढ़ने आया था। उसके चाचा सहरसा के नगरपालिका में कार्यपालक पदाधिकारी थे।
वह चाचा के यहां रहकर दसवीं तक यहां पढ़ाई - लिखाई किया और पावापुरी में मुलाकात के दौरान उसने बिहारशरीफ में संपन्न भूमिहार ब्राह्मण सम्मेलन में संजीव कुमार झा से होने वाली अपनी मुलाकात का भी जिक्र किया और बताया कि संजीव ने उससे मेरे बारे में पूछा था। उसने संजीव का नंबर भी मुझे दिया और इसके काफी दिनों के बाद मैंने उसको फोन किया तो मेरे फोन को रीसिव करने के दौरान उसने बचपन के दोस्त के रूप में ही काफी आत्मीयता से बातचीत की और मुझे कोई अच्छी सरकारी नौकरी नहीं मिलने पर अफसोस प्रकट किया।
उस समय विधानसभा चुनाव हो रहे थे। उसने चुनाव नहीं लड़ने के बारे में भी मुझे बताया था। संजीव मेरा दोस्त था और सहरसा के विधायक के रूप में भी उसकी पहचान कायम हुई। बिहार की राजनीति में भाजपा को यहां स्थापित करने वाले नेताओं में वह शामिल थे। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे। वह अभी ज्यादा उम्र के भी नहीं थे और हम दोनों की आयु लगभग समान थी।