इस सप्ताह कवितालोक में हुए चित्र आधारित सृजन में चयनित सर्वश्रेष्ठ व सराहनीय रचनाएं!
1
चोंच खोल के ताकता, जागी मन में आस।
लेकर दाना आ गई, मैया मेरे पास।।
सूर्य उदय के संग ही, उड़ जाती है रोज।
मीलों दूरी नाप के, लाती दाना खोज।।
पंखों को फिर खोल के, उड़ने को तैयार।
इक-इक दाना चोंच में,लाती है हर बार।।
ममता दाता ने भरी, प्राणी में अनमोल।
बड़ा अनोखा पाश ये,खोल सके तो खोल।।
दानें थोड़े डाल दो, अपनी छत मुंडेर।
चिड़िया करती आस है, रोज लगाती टेर।।
2
👌मंजू बंसल
ओस बूँद मोती लगे, हुई सुहानी भोर।
पर फैला पंछी उड़े, नाचे देखो मोर॥
आया बसंत छा रहा, कोयल करती कूक।
बालक देखे मात को, उठती मन में हूक॥
दाने लेने को चली, होता रहता शोर।
पर फैला पंछी उड़े, नाचे देखो मोर॥
माँ को आते ताकता, होता वो बेहाल।
ममता डेरा डालती, आँचल बनता ढाल॥
खिलाती बड़े प्रेम से, आता नाहीं जोर।
पर फैला पंछी उड़े, नाचे देखो मोर॥
ममता ईश्वर ने भरी, होती है अनमोल।
नाता अद्भुत है बड़ा, जान सके तो बोल॥
बंधन है ये जन्म का,पतंग की ज्यों डोर।
पर फैला पंछी उड़े, नाचे देखो मोर॥
3
👌रीता लोधा, चाकुलिया, झारखण्ड
(विधा - दोहा छन्द)
चुग्गा चिड़िया चोंच में, आती नन्हें पास।
खिला रही है प्रेम से, खोले मुँह ले आस।।
चुन-चुन दाने खेत से, पाले अपना लाल।
करती श्रम जी तोड़ है, देखो उसका हाल।।
माता की ममता यही, बच्चे होते जान।
मानव पशु पक्षी सभी, ऐसे ही हैं मान।।
पीड़ा सहकर जन्म दे, स्नेह धार से पाल।
अपना सबकुछ भूल के, माँ बन जाती ढ़ाल।।
अद्भुत लीला ईश की, मानें सब आभार।
माता के ही रूप में, प्रकटें प्रभु साकार।।
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