★ जगत दर्शन साहित्य ★
एक दर्दीली छुवन: रति चौबे
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हर वर्ष "गणतंत्र दिवस"/
  एक नया संदेश लाता है
हर वर्ष संकटों से जूझने 
           का -
        संकल्प लाता है /
हर बर्ष उम्मीदों के /
       पैगाम नये लाता है/
हर निराशाओं को /
     आशाओं में ढालने के
कई ढंग नये लाता है/
           और ---
हर वर्ष एक दर्दीली छुवन
     बढ़ जाती है/
       मैं देख रही हूं :---
उन अनाथ बेसहारों को /
उनके आंसुओं की /
     अमिट कहानियों को 
फुटपाथ पे पड़े वे/
     ढकते नंगे शरीरों को/
      मुझे आवाज आरही 
उन बेजुबान सिसकियों 
           की:---
उन कोमल, लाड़ली /
    सुंदर बेटियों की/
विश्वास से बिदाई की --
सांस ली फिर चैन की--
  आज उन्हीं की देहरियों
           पे ----
पड़ी है राख उन बेटियों 
          की---
यह देख एक दर्दीली ---
     चुभन बढ़ जाती है -
कब होगा इस देश के 
        आंगन में 
आगमन बीते भारत का?
रामकृष्ण,गौतम की इस
         भूमि पे ?
कब मर्यादा,नीति तपस्या 
       होगी ????
कब साजिशों का पर्दाफाश----हो 
नेह की बाती जलेगी ?
कब झूठी पंचायतों में
न्याय की जीत होगी ??
      कब-कब-??
 इंसानियत हर ओर होगी
    सत्यम् - शिव-सुंंदरम्
       का वो रुप होगा ?
          तब ही लगेगा 
         "गणतंत्र"आया 
  नया संदेश लाता ,/
   नया पैगाम लाया /
नई  उम्मीद लाया /
      और फिर ----
   एक सुखद छुवन से/
         देह पुलकित /
       सुवासित होगी/
 रचना: 
  रति चौबे  
नागपुर (महाराष्ट्र)
