★ जगत दर्शन साहित्य ★
◆ काव्य जगत ◆
नव वर्ष तुम आ ही जाओ
किरण बरेली
बीता वर्ष
तुम पिछली बार
गमों के ढेर सारे
पैबंद लगी चादर
लपेटे चले आए थे।
आज हम उसे
उतार फेंक रहे हैं,
दुर अँधे,
कुएँ की गहराई में।
ओ नूतन वर्ष
इस बार तुम
वैभव का मखमली दुशाला
जिसकी किनारों पर
सुख, शान्ति की
रेशमी झालर लगी हो,
उसे अच्छी तरह से
लपेट कर आना।
तुम्हारे आगमन के लिए
हम आरती का थाल सजाए
बाट जोह रहे हैं।
खुशियों को,
मजबूत धागों में,
बाँध बाँध जो वंदनवार बनाए,
उन्हें द्वार पर टांग दिया है।
कुछ ही पलों में तुम,
आ ही जाओ
आ ही जाओ।
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