दिया खुद जलकर... : बिजेन्दर बाबू
दिया खुद जलकर.. : बिजेन्दर बाबू
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दिया खुद जलकर अंधेरा मिटाता।
न लड़ता झगड़ता कहीं दूर जाता।।
करता है रौशन, सभी का ये आंगन।
गरीबों का घर हो, महल हो या प्रांगण।।
जो भी पास आता, उजाला हीं पाता।
रौशन उजालों में खुद ही नहाता।।
नहीं मीत उसका, न दुश्मन है कोई।
सभी से ये सम भाव रखता जताता।।
ये दुश्मन है तम का,जो साथी अधम का।
अशिक्षा, अनाचार, ज़ूल्मों, सीतम का।।
ये तम नशा और ग़म को बुलाये।
बेबस गरीबों को नाहक सताये।।
अधम और ज़ालिम का साहस बढ़ाये।
अनाचारियों को भी अपना बनाये।।\
दिया भी कई रूप गढ़के है लड़ता।
कभी मात देता, कभी है पिछड़ता।।
गुरु रूप धरके, अशिक्षा हटाये।
कभी सन्त बनके, ये सबको जगाये।।
सभी रूप में है ये देता उजाला।
करता सदा है ये तम का निवाला।।
नाहक बनी हैं, हवायें ये दुश्मन।
बुझाने में इसको, लगाये है तन-मन।।
मेरे यार मिल के तू इनको बचाओ।
गुरु और संतों को दिल से लगाओ।।
अगर ना बचाये सुनो इस दिये को,
तो बुझते हीं छाये महा तम का डेरा।
तड़पते बिलखते रहो उम्र भर तुम,
न होगा कभी ज्ञान का सुख सबेरा।।
सुनो गौर से अब बिजेंदर जी वाणी।
लड़े जो अधम से, उसी की जवानी।।
करो सामना तू अंधेरों से डटके।
न मानो कभी हार, सोचो न हटके।।
यहीं बात सबसे मैं कहकर जगाता।
यहीं राज जीवन की सबसे बताता।।
दिया खुद जलकर अंधेरा मिटाता।
न लड़ता झगड़ता कहीं दूर जाता।।
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रचना
बिजेन्द्र कुमार तिवारी
(बिजेन्दर बाबू)
गैरतपुर, माँझी सारण, बिहार
मोबाइल नंबर:- 7250299200