★ जगत दर्शन साहित्य ★
विधा-नवगीत : रानू मिश्रा अजिर
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हुआ बोल बाला अँङ्गल का
हिन्दी मन में सकुचाई।
रही बिलखती रोती हिय से,
हो अधीर सी घबराई॥
आदि पुराणों की है भाषा,
देवनागरी भोली सी।
संस्कृत से जन्मी शुरुआती,
सरल शब्द जन बोली सी॥
शिव जी सूत्रधार हैं जिनके,
डम डम डमरू शहनाई।
रही बिलखती रोती हिय से,
हो अधीर सी घबराई॥
हिंदुस्तानी की जुबान है,
भाव नहीं आपस होता।
अँग्रेज़ी ने कुचल दिया जग,
हिंद देश मन में रोता॥
चौदह सूत्रों महादेव जी,
सुर धारा सी तरुणाई।
रही बिलखती रोती हिय से,
हो अधीर सी घबराई॥
जन जन से अनुरोध यही है,
हिन्दी भाषा अपनाएं।
आदि रही है हिन्दी मेरी,
पढ़ो और सब समझाएं॥
सुंदर ज्ञान बहाओ प्रतिपल,
हर दिन हिन्दी मुसकाई।
रही बिलखती रोती हिय से,
हो अधीर सी घबराई॥
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रचना: रानू मिश्रा अजिर