पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल विहारी वाजपेयी : जयंती पर मेरे उद्गार समर्पित-
भारत रत्न -"अटल"
नमन करूं मैं तुझे 'अटल'
चरण धोऊं मैं तेरे "अटल"
चरणरज माथे पे लगाएं
तू ही भारत रत्न "अटल"
जिंदगी की धूप से हुए ना
ना कभी विचलित"अटल'
जीने के अंदाज नये  थे
कांधों  पे ना  आलस था
ऊर्जा, संकल्प का झरना
नस-नस में तेरा बहता था
बीजेपी की नींव तुम्हीं थे 
बाबा आमटे गुरू  तुम्हारे
पूरा देश था तेरा  दिवाना
५० साल रहे सांसद तुम 
'राजनेता' पर कविराज थे 
जान फूंकते थे शब्द  तेरे 
जीते जागते राष्ट्पुरूष थे
वाणी में था अद्भुत  तेज 
एक लक्ष्य था जीवन का
लालच से थे कोसों  दूर 
स्वाभिमान की रक्षा कर
खरीद-फरोख्त की सत्ता
             से दूर
कदम तेज बढ़ते जब तेरे
रूक जाते थे चंदा सूरज
पुष्प बिखेर वृक्ष यूं झुकते
करने अभिनंदन तेरा वो 
            " अटल" 
"वाणी" थी तेरी बंदूक की
             "गोली" 
"शब्द" तेरे शोले थे अटल
 दुनियां के सब लोगभी थे
             " बौंने"
तेरे ही 'व्यक्तित्व' के आगे
अखंड भारत के बाद का
              " टीका"
अमिट छबि तेरी सदा थी
             "अटल"
जिस दिन तूने छोड़े प्राण'
रोया आकाश,प्रकृति रोई
राष्ट का गौरव तू देश की
            "शान"
युग युगांतर तेरा ही नाम
             रहेगा 
राम,कृष्ण,गौतम, भांति 
युग मिट जावे,तू कभी ना
         मिटेगा 'हनुमान'
आंखों की ये गंगाजली ,
   धो ना पालेगी नाम तेरा
           नमन करूं मैं 
        तुम को "अटल"
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महामना मदनमोहन मालवीय  जयंती पर मेरे उद्गार समर्पित-
ओ महामना-सरस्वतीपुत्र
ओ महामना-सरस्वतीपुत्र
 कैसे भूलेगा तुम्हें'भारत'
            तुम उसके-
        भाग्यविधाता थे 
 स्वतंत्रता -संग्राम के तुम
     नायक महामना थे -
तुम युग के आदर्श पुरुष 
             थे -
तुमसा नहीं आत्मत्यागी 
देश-भक्ति थी नस-नस में
तन भारत को मन भारत 
              में
     तुम थे पूर्ण समर्पित
             भारत को -
मातृभाषा,भारत मां के 
       तुम सच्चे सपूत रहे 
कर्म ही जीवन ध्येय था 
अभद्रता से नाहि नाता
शालीनता की प्रतिमूरत
क्रोध  भागता तुमसे दूर
आंदोलनों में रहे प्रमुख
ललक रही आजादी की  स्वतंत्र भारत मां की गोद
           में सोने की
रहा अधूरा स्वप्न तुम्हारा 
मूंद ली आंखें तूने "मदन"
     बनारस हिंदू--
           विश्वविद्यालय के चप्पे-चप्पे में तू ही है
          विश्वविद्यालय की भूमि पुकारे तुझको 
 वृक्षों की शीतल छाया में
            तू ही "मदन""
हर विधार्थी में तेरी ही 
         आत्मा"मोहन"
           करती वास
"सत्यमेव जयते " तेरा ही
      " आर्दश वाक्य " था
कर दिया अंकित उसको
 "राष्ट्रीय प्रतीक "के
                नीचे -
        युगों युगों तक 
भारत रत्न से हुए 
      अलंकृत 
ढेरों मणि माणिक तुमपे 
       न्यौछावर
हिंदुत्व के रक्षक ,
       निडरता के प्रतीक
   जनक संस्थाओं के ,
       हे आत्मत्यागी,
ओ मृदुभाषी,श्रृध्धेय
         " मालवीय"
  तुमको मेरा -
       शत् शत् नमन। 
रति चौबे 
नागपुर [महाराष्ट्र]
मोबाइल नंबर 9766740311
