★★जगत दर्शन साहित्य★★
◆ काव्य जगत ◆
हमारी अधूरी कहानी
पंकज त्रिपाठी
दिखी डूबते सूर्य में रक्तिमा जो।
असंतृप्त से भाव की भंगिमा वो।
घिरी कालिमा व्योम की है निराशा।
सजी यामिनी प्रेम का है कुहासा।
गिरी योग से दैव के चार बूंदें।
उसी आस में आज भी हैं उनींदे।
रही स्वाति में चोंच मेरी खुली सी।
नहीं मैं पपीहा जिसे वो मिली थी।
मिला सीप का अंक खोती रही वो।
हुआ प्रीत का अंत मोती बनी वो।
दिखी दम्भ में रत्न का भाव जागा।
जले स्वप्न ले यत्न भूला अभागा।
कभी प्रेम की नाव से मैं गिरा था।
वहीं डूबता जो नदी का सिरा था।
चला जा रहा हूँ व्यथा को समेटे।
हृदै घाव में चीर भीगा लपेटे।
घने मेघ की प्रीत पुर्वा सुहानी।
रहे थे कभी मीत यादें पुरानी।
सिले होठ हैं आंख में आज पानी।
पंकज त्रिपाठी