★ जगत दर्शन साहित्य ★
◆ काव्य जगत ◆
पर्वत
सुनीता सिंह सरोवर
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जाने कितनी सदियां बीती,
अचल, अडिग खड़े हैं भूमिधर,
युग बदले दिन, साल महीने,
नहीं बदले तुम अचल, गिरि,
जड़वत हो तुम मौन खड़े,
तीव्र वेदना सहते हरदम,
कुछ न कहते बनके रक्षक,
देते संरक्षण,
हे धरणीधर, तुम्हें नमन,
तुम तपस्वी तल्लीन बडे़,
टुकूर- टुकूर तुम तकते अंबर,
सर्द, बर्फ़ के कफन तले,
सब कहते हैं तुम विशाल बडे़
हर रिश्ते से दूर पड़े,
निर्जन, निर्जन शून्य बड़े,
सबको भाती तुम्हारी वादियाँ,
मनहर सुंदर प्यारी घाटियाँ,
सहम जाते तुम मानव के कृत्य से,
जमते जाते प्लास्टिक के ढेर से,
कचरे से है कापे कलेजा,
और विस्फोटक से दिल के टुकड़े,
हे धराधर करो क्षमा,
शैल निवास करो कृपा,
हम मानवता का फर्ज निभाएंगे,
वसुधा का कर्ज चुकाएंगे!
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सुनीता सिंह सरोवर
देवरिया