★★ जगत दर्शन साहित्य ★★
◆ काव्य जगत ◆
● बोलहूँ ना देलें बोला के.... ●
B
◆ बिजेंद्र कुमार तिवारी (बिजेन्दर बाबू)
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नावका जाबाना के मनइ पुरानाका
गेंड़ूर मारेलें गुटिया के....
कवि सम्मेलन हो चाहे परिचर्चा ,
बोलहूं ना देलें बोला के....
अपन बिगाड़ी बनेलें चाल्हाक
नीके बनेमें बनेले घाचाक..
सब बात सांच हमऽ कहिले सबसे
तनीको ना राखीं गाला के..
कवि सम्मेलन हो चाहे परिचर्चा
बोलहूं ना देलें बोलाके...
कार्यक्रम करावेला कहस सभत्तर
ठीके समइया पर करस छॅहत्तर
इज्जत लूटावेलें अपने से भइया
केतनों राखीं सरिया के..
कवि सम्मेलन हो चाहे परिचर्चा
बोलहूं ना देलें बोला के...
नाम का बताईं हम खुलके ए भाई..
कहीं ईशारा में सबके बुझाई....
बाबू बिजेंदर तू कतनों दुरईबऽ...
रखिहें इ बुरबक बना के
कवि सम्मेलन हो चाहे परिचर्चा
बोलहूं ना देलें बोला के
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बिजेंद्र कुमार तिवारी
(बिजेंदर बाबू)
गैरतपुर, मांझी
सारण, बिहार
72502 99200