करवा चौथ (मनहरण घनाक्षरी)
पंकज त्रिपाठी
जिंदगी की सुबह ने
मुझको दुलारा जब,
शरमाती शाम
वो सुहानी याद आ गयी।
ख्वाहिशों में लहरों की देखा
जब खुद को तो,
जाते हुए दूर
वो रवानी याद आ गयी।
भूलने की कोशिशें
जो दिल ने करीं तमाम,
हाथ साथ छूटती
कहानी याद आ गयी।
सुना जो प्रसंग आज
करवा चौथ व्रत का तो,
फेंकती टिफिन
वो दिवानी याद आ गयी।
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रचना
पंकज त्रिपाठी
हरदोई (यू पी)
9452444081