★★ जगत दर्शन साहित्य ★★
◆ काव्य जगत ◆
मिल के पत्थर : पंकज त्रिपाठी
श्रृंखला संघर्ष में भी,
साथ जो रहते।
आचरण से हर हृदय में,
वास वो करते।
एक दिन बनते वही हैं
मील के पत्थर,
ठोकरों को वक्त की
दिन रात जो सहते।
चांद तारों से तुम्हारी,
मांग मैं भर दूं।
प्रज्ज्वलित उर में दिवाली,
फाग मैं कर दूं।
हो रहा उत्कर्ष नेहिल,
भावनाओं का,
रागिनी में बज रही धुन,
राग मैं कर दूं।
कर रही पीयूष वर्षा,
चांदनी खिलकर।
बढ़ रही प्रत्यूष लिप्सा,
यामिनी मिलकर।
पल्लवों पर ओस जैसे,
रति अधर अमृत,
है तरंगित शिल्प दिव्या,
दामिनी बनकर।
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पंकज त्रिपाठी