देश व्यापी कृषक आंदोलन से भाव विभोर हो कर रचनाकार के कलम कहाँ रुक सकते थे! भारत के जाने माने कवियित्री किरण जी (बरेली उत्तरप्रदेश) अपने सहज, सरल शब्दों के द्वारा जो किसानों के दुख-दर्द तथा भारत के भविष्य, अन्नदाता के महत्ता को समझाया है , अति सराहनीय है। : बी के भारतीय
प्रस्तुत है उनकी यह रचना:
☺️ दर्द ☺️
उनके अपने जो चले गए,
वे फिर नहीं वापस आएंगे,
उजड़े घरों में श्मशान का सन्नटा,
चीख पुकार ह्दय विदारक है।।।
उनके जज्बात अपने ही,
आँसुओ में भीगे हुए हैं,
धीरे धीरे उनकी यादें,
चेहरे की पहचान भी भुला दिया जाएगा।।
पीड़ा का स्याह अँधेरा,
बढ़ता चला जाएगा,
मुट्ठी भर उजालों के लिए,
उनके घर मोहताज हो जाएंगे।।।
कितने रिश्तो को मिला है,
उम्र भर का अकेलापन,
जिस्म पर पलता वो नासूर मिला,
जिसका रक्त सूखता नहीं दर्द बनके बहता है।
इंसाफ की डगर पर,
उलझा जाल ही बिछा होगा,
न्याय के पक्ष में ज़हर सी मिलावट होगी,
सच्चाई पर झूठ भारी पड़ेगा।।
दिल की तसल्ली को,
फ़रेबी वादे मिलेंगे,
ऐसा ही सदा होता आया है,
बदलाव का किस्सा केवल किताबों में मिलेगा।
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रचना
किरण बरेली
बरेली (उत्तरप्रदेश)